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तेजी से बदलते इस आधुनिक दौर में अपनी सुख सुविधा की सामग्री को बढाने के लिए और रोज़ाना यूज में लाई जाने वाली चीजों के इस्तमाल को और आसान बनाने के लिए लगातार नए नए वस्तुओ का आविष्कार होता रहता है। ऐसी बहुत सी चीजें होती है जिन्हे बनाते समय कई हानिकारक केमिकल प्रोसेस का इस्तमाल भी किया जाता है और ऐसी चीजों में केमिकल की अधिकता की वजह से यह वस्तुएं हमारी सेहत के लिए हानिकारक बन जाती है। परेशानी की बात यह है कि आजकल ज्यादातर लोग इन वस्तुओ से होने वाले बुरे परिणामों से अनजान लगातार इन चीजों का इस्तमाल करते जा रहे हैं। ऐसी कोई भी वस्तु जो कि प्राकृतिक नहीं हैं या जिन्हें मनुष्य ने केमिकल के इस्तमाल से बनाया है अगर वह हमारे शरीर में किसी तरह प्रवेश कर जाती है तो इनसे छोटी से लेकर कई गंभीर बीमारियां भी हो सकती है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 10 सालों में किडनी और फेफड़ों की बीमारियां, लीवर की खराबी और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां फैलाने के पीछे 80% से ज्यादा इंसानों द्वारा निर्मित इन्ही केमिकल युक्त चीजों का ही हाथ है। हमारे आस पास केमिकल से बनी हुई चीजें इतनी ज्यादा फैल चुकी है कि जाने अनजाने हम इनका इस्तमाल कर ही लेते हैं। हालांकि इनसे होने वाले बुरे परिणाम हमें इनके केवल एक बार के स्तेमाल से नजर नहीं आते लेकिन समय के साथ साथ धीरे धीरे यह हमारे शरीर को अंदर से प्रभावित कर रहे होते हैं। जिसकी वजह से अचानक एक दिन यह किसी बड़ी बिमारी के रूप में हमारी ज़िन्दगी से उम्र भर के लिए जुड़ जाते हैं। आइये जानते हैं तीन ऐसी साधरण लेकिन खतरनाक चीजों के बारे में जिनमें केमिकल की मात्रा बहुत अधिक होती है और आजकल जिनका इस्तमाल दुगनी रफ्तार से बढ़ता चला जा रहा है।
Styrofoam Products –
Cancer Causing Products We Use Everyday
Styrofoam से बने कप और डिस्पोजेबल प्लेटों का इस्तमाल आजकल बढ़ता जा रहा है। ज्यादातर इन्हे चाय, कॉफी और कोल्ड्रिंग जैसी चीजें पीने के लिए यूज़ में लिया जाता है। स्टाइलो फोम पोलिस स्टाइलिंग प्लास्टिक द्वारा निर्मित होता है। यह प्लास्टिक की गैस से भरी हुई बहुत छोटी छोटी बॉल से मिलकर बनता है। यह एक तरह का थर्माकोल ही है लेकिन यह साधरण थर्माकोल से ज्यादा सख्त और मजबूत होता है। जिन गैसों के जरिये इसे हल्का बनाया जाता है और इसकी पूरी निर्माण प्रक्रिया में जिन केमिकल्स का इस्तमाल होता है वह हमारी हेल्थ के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकते हैं। इसमें पाए जाने वाले केमिकलों का जब जानवरों पर परीक्षण किया गया तो उसमें कुछ ऐसे तत्व पाए गए जो की हमारे शरीर में कैंसर तक पैदा कर सकते हैं। स्टारों फोम से बनी चीजों में जब गरम लिक्विड डाला जाता है तो इसमें मौजूद पॉलिश, टैनिन मटेरियल चाय और कॉफी में घुलने लगता है। इसलिए कई देशों में स्टायफंड से बने हुए कप्स पर पूरी तरह प्रतिबंध यानि की बैन लगा दिया गया है। हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार स्मार्टफोन से कैंसर के साथ साथ थायरॉइड प्रॉब्लम, आखों में इन्फेक्शन, कफ, थकान, कमजोरी और त्वचा रोग होने की संभावना काफी ज्यादा होती है। कोल्ड्रिंग पानी और ठंडी चीजों का स्टेयरग फोन से बने हुए बर्तन में सेवन करना इतना बुरा नहीं होता। लेकिन चाय, कॉफी और सूप जैसी बहुत तेज गरम चीजें इसमें डालने पर यह न्यूरो टॉक्सिक बन जाता है जो की हमारे दिमाग की नसों को बहुत ज्यादा कमजोर बना सकता है। प्लास्टिक की वजह से इसे रिसाइकल करना भी एक मुश्किल काम है जो की हमारे साथ साथ हमारे वातावरण के लिए भी हानिकारक है।
अगरबत्ती-
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हमारे देश में पूजा के दौरान या फिर किसी धार्मिक काम को करते समय अगरबत्ती का इस्तमाल होता ही है और जो लोग भगवान की रोज रोज पूजा नहीं कर सकते वह लोग सिर्फ दीया और अगरबत्ती लगाकर भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा को जाहिर करते हैं। अगरबत्ती का इस्तमाल भारत के अलावा चाइना, जापान, अरब, म्यानमार और वियतनाम जैसी कई एशियन कंट्रीज में किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं अगरबत्ती से निकलने वाला धुआं सिगरेट के धुएं से भी ज्यादा खतरनाक होता है। इटली में की गई एक रिसर्च के मुताबिक अगरबत्ती जलाने पर निकलने वाले धुएं से पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन और कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसें निकलती हैं जो कि फेफड़ों का कैंसर तक पैदा कर सकती है और चूंकि इसे हम अपने घर या आफिस के अंदर जलाते हैं, इससे निकलने वाली खतरनाक गैस हमारी सांसों के जरिए लगातार हमारे शरीर में प्रवेश करती रहती है, जिसका असर हमारे दिमाग और त्वचा पर भी होने लगता है। चाहे अगरबत्ती जलाने से खुशबू आती हो लेकिन इससे घर के अंदर के वातावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
अगरबत्ती की खुशबू तेजी से इसलिए फैलती है क्योंकि इसमें कैथलिक नामक कैमिकल पाया जाता है और बुझने के बाद भी अगरबत्ती में मौजूद केमिकल्स लगभग 5 से 6 घंटे तक घर के अंदर के वातावरण में ही मौजूद होते हैं। ऐसे में जिन लोगों को लंग्स से संबंधित प्रॉब्लम है या जो लोग अस्थमा के पेशेंट से उन लोगों की यह बीमारी और ज्यादा बढ़ सकती है। जो लोग लगातार अगरबत्ती के धुएं के संपर्क में रहते हैं उन्हें समय के साथ साथ स्वास संबंधी कोई ना कोई प्रॉब्लम होती ही है। अगरबत्ती के धुएं का हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और साथ ही यह न्यूरोलॉजिकल और कार्डियो लॉजिकल प्रोब्लम भी पैदा कर सकता है।
सिगरेट के धुएं से डेढ़ गुना ज्यादा हानिकारक होने की वजह से जब इसका धुंआ हमारे नाक के जरिए शरीर में प्रवेश करता है तो इससे एक्यूट ब्रोंकाइटिस होने का खतरा भी काफी ज्यादा बढ़ जाता है। स्वास्थ के लिए हानिकारक होने के साथ साथ अगरबत्ती इस्तेमाल नहीं करने के पीछे एक धार्मिक पहलू भी है। बहुत सारी कंपनियां अगरबत्ती बनाने में बांस का इस्तमाल करती है और हिंदू धर्म में बांस को जलाया नहीं जाता क्योंकि बांस की लकड़ी को जलाने पर निकलने वाले धुएं और आग को देखना हिन्दू धर्म में अशुभ माना गया है और इसे नाश का प्रतीक कहा जाता है। इसलिए किसी भी हवन या पूजा में कभी भी बांस की लकड़ियों का इस्तमाल नहीं होता और यहां तक की चिता में भी बांस को जलाया नहीं जाता।
ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष को सबसे बुरे दोनों में से एक बताया गया है क्योंकि इसकी वजह से घर में अशांति फैलती है और जीवन के हर क्षेत्र में लगातार असफलता का सामना करना पड़ता है। कई ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि बांस को जलाने से पितृदोष भी होता है। अब जरा सोचिये एक ओर आप भगवान के सामने अगरबत्ती लगा कर किसी अच्छे फल की कामना कर रहे हैं और दूसरी तरफ आप अपने घर में जहरीली गैस के जरिए बीमारियां और नेगेटिविटी बढ़ा रहे हैं। इसलिए अगरबत्ती का इस्तेमाल करने से पहले ये जरूर पता कर लें कि वह पूरी तरह ऑर्गेनिक और केमिकल फ्री हो और उसमें बांस की लकड़ी का इस्तमाल ना किया गया हो।
मॉस्कीटो रेपेलेंट –
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मच्छरों को मारने वाली कॉयल और रिपेलेंट का मच्छरों के साथ साथ हर जीवित प्राणी पर भी असर होता है। ज्यादातर लोगों को ये पता है कि मच्छरों को मारने वाली चीजों में ज़हरीले पदार्थों का इस्तमाल होता है। अगर आप रोजाना 5 से 6 घंटे या उससे ज्यादा समय तक मच्छर भगाने वाले रेपेलेंट या कॉयल जलाकर उसमें सांस लेते हैं तो इससे निकलने वाले केमिकल का हमारे स्वास्थ पर बहुत बुरा असर पड़ता है। सुबह उठते ही सर में दर्द या भारीपन महसूस होना या आलस और थकान होना रात भर मच्छर भगाने वाले कॉयल रेपेलेंट में सांस लेने का नतीजा भी हो सकता है। हानिकारक केमिकल होने की वजह से यह फेफड़ों की खराबी, सांस फूलना, कफ और अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म देता है और खासकर छोटे बच्चों की सेहत पर इसका सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है। कम उम्र के बच्चों के छोटे फेफड़े इससे होने वाले बुरे प्रभावों को सहन करने में असमर्थ होते हैं और ऐसे में उन्हें एलर्जी और कम उम्र में अस्थमा होने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है।
अगर आप अक्सर मच्छरों से परेशान रहते हैं और आप के पास बाजार में मिलने वाले केमिकल युक्त प्रोडक्ट्स का इस्तमाल करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है तो इस विषय पर आगे आनेवाले विडियो में हम जानेंगे घर पर ही कुछ आसान तरीकों से मच्छरों को कैसे भगाया जाए। यह नुस्खे बाज़ार में मिलने वाली चीज़ों से भी ज्यादा असरदार हैं और इनका हमारी सेहत पर कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ता।
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