Health Darbar https://healthdarbar.com Health is Wealth Mon, 31 Mar 2025 08:18:56 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 https://healthdarbar.com/wp-content/uploads/2023/07/cropped-HealthDarbar-32x32.png Health Darbar https://healthdarbar.com 32 32 Shocking Facts About Slip Disc: Causes, Symptoms & Treatment, डॉक्टर से जानें लक्षण https://healthdarbar.com/shocking-facts-about-slip-disc-causes-symptoms-treatment-%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%b2/ https://healthdarbar.com/shocking-facts-about-slip-disc-causes-symptoms-treatment-%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%b2/#respond Mon, 31 Mar 2025 08:18:53 +0000 https://healthdarbar.com/?p=4544

क्या आपकी कमर में दर्द रहता है? अचानक पैर सुन्न हो जाते हैं? गर्दन में दर्द रहता है और हाथ सुन्न हो जाते हैं? ये Slip Disc के लक्षण हो सकते हैं।

‘साइंस डायरेक्ट’ में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, पूरी दुनिया में लगभग 1.3% लोगों को जीवन में कभी-न-कभी Slip Disc की समस्या होती है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, भारत में लगभग 2% लोगों को हर साल Slip Disc की समस्या होती है।

हमारी रीढ़ की हड्डी यानी स्पाइन कई छोटी हड्डियों से मिलकर बनी होती है। ये हड्डियां एक कड़ी में सिर से लेकर कमर तक जुड़ी हुई हैं। इन हड्डियों के बीच नरम कुशन जैसे Slip Disc होते हैं। जिस तरह गाड़ियों में शॉक एब्जॉर्बर होते हैं, जो झटकों को एब्जॉर्ब कर लेते हैं और गाड़ी स्मूद चलती रहती है। इसी तरह ये Slip Disc झटकों को एब्जॉर्ब करती हैं और हड्डियों को लचीला बनाए रखती हैं। जब ये खिसक जाते हैं या फट जाते हैं तो इसे Slip Disc कहते हैं। कई बार इसके लक्षण इतने खराब हो सकते हैं कि चलना-फिरना भी मुश्किल हो सकता है।

यहाँ पर Slip Disc के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानें।

  • यह क्या होती है?
  • इसके लक्षण क्या हैं?
  • स्लिप डिस्क कितने तरह की होती है?
  • इसका इलाज और बचाव के उपाय क्या हैं?

स्लिप डिस्क क्या है?

ऑर्थोपेडिक डॉ. अंकुर गुप्ता कहते हैं कि अगर कोई तेज झटका लगता है तो डिस्क खिसक सकती है या फट सकती है। यह भी हो सकता है कि डिस्क से जेल जैसा पदार्थ निकल आए, इसे स्लिप डिस्क या हर्निएटेड डिस्क कहते है।

कितने तरह की होती है स्लिप डिस्क?

डॉ. अंकुर गुप्ता कहते हैं कि सुनने लग सकता है कि स्लिप डिस्क का मतलब है कि डिस्क खिसक गई है। हालांकि, इसमें डिस्क खिसकने के अलावा फट सकती है या हो सकता है कि इसके अंदर भरा जेली जैसा पदार्थ रिलीज हो गया है। स्लिप डिस्क कई तरह की होती है-

प्रोट्रूजन (Protrusion)- जब डिस्क का बाहरी हिस्सा अपनी जगह से खिसकता है लेकिन पूरी तरह फटता नहीं है।

एक्सट्रूजन (Extrusion)- जब डिस्क का जेल जैसा पदार्थ सरफेस से बाहर निकलता है, लेकिन फिर भी डिस्क के अंदर रहता है।

सीक्वेस्ट्रेशन (Sequestration)- जब डिस्क का अंदरूनी जेली जैसा पदार्थ पूरी तरह बाहर आकर स्पाइनल कॉर्ड पर प्रेशर बनाने लगता है।

बल्गिंग डिस्क (Bulging Disc)- जब पूरी डिस्क हल्की फूल जाती है, लेकिन फटती नहीं है।

स्लिप डिस्क के कारण दिख सकते हैं ये लक्षण

कमर के पास स्लिप डिस्क होने पर

  • कमर दर्द
  • पैर में झनझनाहट या सुन्नता महसूस होना
  • मांसपेशियों में कमजोरी
  • एक पैर में नीचे की ओर तेज दर्द (सायटिका )
  • गर्दन में दर्द
  • कंधे और हाथ में दर्द
  • उंगलियों में झनझनाहट या सुन्नता
  • सिर घुमाने पर दर्द बढ़ना

स्लिप डिस्क के कार

स्लिप डिस्क की समस्या आमतौर पर 40 से 50 साल की उम्र के बाद ज्यादा देखने को मिलती है। बढ़ती उम्र के साथ रीढ़ की हड्डियों के बीच मौजूद डिस्क कमजोर होने लगती हैं। इसके कारम उनके फटने या खिसकने का जोखिम बढ़ जाता है। हालांकि, गलत लाइफस्टाइल और बहुत भारी वजन उठाने से यह समस्या कम उम्र में भी हो सकती है।

इन कारणों से हो सकती है स्लिप डिस्क की समस्या

उम्र बढ़ने से – उम्र के साथ डिस्क कमजोर और कठोर हो जाती है।

भारी वजन उठाने से – पीठ के बजाय कमर पर जोर पड़ सकता है।

अचानक झटका लगने से – चोट लगने से भी डिस्क फट सकती है।

गलत पोश्चर से –  गलत पोश्चर में बैठने से रीढ़ पर दबाव पड़ता है।

वजन बढ़ने से-  ज्यादा वजन से डिस्क पर दबाव बढ़ता है।

स्मोकिंग से – शरीर में ऑक्सीजन कम होने से डिस्क कमजोर हो सकती है।

स्लिप डिस्क का इलाज क्या है?

इसके लिए दर्द की दवाओं के साथ फिजियोथेरेपी दी जा सकती है। इसके अलावा डॉक्टर कुछ एक्सरसाइज सजेस्ट कर सकते हैं।

दवाएं: हल्के दर्द के लिए पेन किलर दी जाती हैं और अगर यह दर्द नसों में महसूस हो रहा है तो गैबापेंटिन जैसी दवाएं दी जा सकती हैं।

फिजियोथेरेपी: एक्सरसाइज और मसाज से दर्द कम हो सकता है।

इंजेक्शन थेरेपी: गंभीर मामलों में स्टेरॉयड इंजेक्शन दिए जाते हैं।

सर्जरी: अगर लगभग 6 हफ्तों तक इलाज के बाद भी दर्द बहुत ज्यादा बना हुआ है तो ऑपरेशन किया जा सकता है।

स्लिप डिस्क से कैसे बचें?

डिस्क की खास बात ये है कि यह हमारे रीढ़ की हड्डियों के बीच रहकर उन्हें कुशन देती है और पूरे शरीर को लचीलापन देती है। हम जितना चलते-फिरते रहेंगे और एक्सरसाइज करते रहेंगे, ये हेल्दी बनी रहेंगी। अगर सिडेंटरी लाइफस्टाइल फॉलो कर रहे हैं या बहुत लंबे समय तक एक ही पोश्चर में बैठे रहते हैं तो स्लिप डिस्क की समस्या हो सकती है। इससे बचाव के लिए फॉलो करें ये टिप्स-

  • रोज हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करें।
  • सही पॉश्चर में बैठें और चलें, सीधे बैठें, झुककर न चलें।
  • हेल्दी डाइट लें और वेट कंट्रोल में रखें।
  • लंबे समय तक बैठने से बचें। बीच-बीच में ब्रेक लेकर टहलें।
  • बहुत भारी वजन उठाते समय घुटनों का सहारा लें, पीठ पर जोर न दें।

स्लिप डिस्क से जुड़े कॉमन सवाल और जवाब

क्या स्लिप डिस्क अपने आप ठीक हो सकती है?

हां, हल्की स्लिप डिस्क अपने आप ठीक हो सकती है। इसमें कुछ हफ्तों या कुछ महीनों का समय लग सकता है। जरूरत पड़ने पर दवाएं और फिजियोथेरेपी लेनी पड़ सकती है। गंभीर मामलों में सर्जरी की जरूरत भी पड़ सकती है।

क्या स्लिप डिस्क से पूरी तरह बचाव संभव है?

हां, अगर सही पॉश्चर अपनाया जाए। रोज एक्सरसाइज की जाए, भारी वजन उठाने से बचा जाए और हेल्दी डाइट ली जाए तो स्लिप डिस्क से बचाव संभव है।

स्लिप डिस्क में कौन सी एक्सरसाइज करनी चाहिए?

डॉक्टर की सलाह से स्ट्रेचिंग, कोर स्ट्रेंथ एक्सरसाइज, योग और हल्की फिजियोथेरेपी की जा सकती है, लेकिन बिना सलाह के कोई भी एक्सरसाइज न करें।

क्या स्लिप डिस्क में चलनाफिरन से मुश्किल बढ़ सकती है?

नहीं, हल्की-फुल्की एक्टिविटी और वॉक करने से दर्द कम हो सकता है। हालांकि, इस दौरान बहुत ज्यादा झुकने या भारी काम करने से बचना चाहिए।

क्या स्लिप डिस्क की समस्या पूरी तरह ठीक हो सकती है?

सही इलाज, एक्सरसाइज और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने से यह समस्या कंट्रोल में आ सकती है। हालांकि, कुछ मामलों में यह बार-बार हो सकती है, इसलिए सावधानी जरूरी है।

स्लिप डिस्क में कौन से फूड्स फायदेमंद हैं?

इस दौरान हड्डियों को मजबूत रखने के लिए दूध, दही, बादाम, हरी सब्जियां और विटामिन-D से भरपूर भोजन करना फायदेमंद हो सकता है।

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Shocking Facts About Snoring You Need to Know | 40% पुरुष, 24% महिलाएं खर्राटे लेते हैं – जानें क्यों https://healthdarbar.com/shocking-facts-about-snoring/ https://healthdarbar.com/shocking-facts-about-snoring/#respond Mon, 31 Mar 2025 07:44:53 +0000 https://healthdarbar.com/?p=4538

आपने अपने आसपास ऐसे लोगों को जरूर देखा होगा, जो नींद में Snoring यानी खर्राटे लेते हैं। खर्राटे लेना काफी सामान्य बात है। कुछ लोगों को नींद में खर्राटे लेने की आदत होती है।

अमेरिकन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन (AASM) के मुताबिक, पूरी दुनिया में लगभग 24% एडल्ट महिलाएं और 40% एडल्ट पुरुष Snoring करते हैं। ऐसा नहीं है कि खर्राटे सिर्फ एडल्ट्स की समस्या है। बच्चों में भी खर्राटों की समस्या होती है।

आमतौर पर ऐसी धारणा है कि अगर कोई व्यक्ति सोते समय Snoring करता है तो उसे अच्छी नींद आती है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। खर्राटे किसी आने वाली गंभीर बीमारी का संकेत हो सकते हैं। इसलिए समय रहते इसकी पहचान करना जरूरी है।

तो चलिए, आज Fitness Secret में बात करेंगे कि लोगों को खर्राटे क्यों आते हैं? साथ ही जानेंगे कि-

  • खर्राटे कौन सी बीमारियों का संकेत हो सकते हैं?
  • इस समस्या से कैसे निजात पाया जा सकता है?

खर्राटे क्यों आते हैं?

Shocking Facts About Snoring

नींद के दौरान हमारी मसल्स रिलैक्स हो जाती हैं। इस दौरान कई बार नाक के पीछे का एरिया (नासोफैरिंक्स) और मुंह के पीछे का एरिया (ओरोफैरिंक्स) की मसल्स सिकुड़ जाती हैं।

इसके कारण सांस लेने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है। इससे सांस लेने के दौरान आवाज के साथ सॉफ्ट टिश्यू और मसल्स वाइब्रेट होने लगती हैं, जो खर्राटे की वजह बनते हैं। आसान भाषा में कहें तो यह कोई बीमारी नहीं है। यह महज एक आवाज है, जो सोने के दौरान सांस के रास्ते में रुकावट की वजह से होती है।

दुनिया में हर 10 में से 4 लोग लेते हैं खर्राटे

  • 40% पुरुष खर्राटे लेते हैं।
  • 30% महिलाएं खर्राटे लेती हैं।
  • 10-12% बच्चे खर्राटे लेते हैं।

    यह समस्या मिडिल एज के लोगों को ज्यादा होती है।

किन लोगों को खर्राटे लेने की समस्या ज्यादा होती है।

Shocking Facts About Snoring

खर्राटे लेने की समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है, लेकिन कुछ लोगों में इसका खतरा अधिक होता है। जैसेकि-

  • 40 से 60 की उम्र के बीच के लोगों को।
  • मोटापे की समस्या से ग्रसित लोगों को।
  • नाक और गले की समस्या से पीड़ित लोगों को।
  • स्मोकिंग या शराब पीने वाले लोगों को।
  • अनिद्रा से पीड़ित लोगों को।

क्या खर्राटे आना किसी बीमारी का संकेत है?

Shocking Facts About Snoring

नींद में ज्यादा खर्राटे लेने का अर्थ ये है कि शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है। साथ ही शरीर के नर्वस सिस्टम में गड़बड़ी से भी खर्राटे आ सकते हैं। खर्राटे लेने वाले लोगों को स्लीप एप्निया भी हो सकता है। इस दौरान मसल्स इतनी शिथिल हो जाती हैं कि वे सांस नली में रुकावट पैदा कर देती हैं। इसके अलावा खर्राटे हार्ट डिजीज का भी संकेत देते हैं।

खर्राटे हो सकते हैं इन बीमारियों का संकेत

  • हार्ट डिजीज
  • हाइपोथायराइडिज्म
  • मोटापा
  • ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया
  • साइनस की समस्या

खर्राटे के साथ सांस रूकना कितना खतरनाक है?


अगर कोई व्यक्ति खर्राटे के साथ अचानक नींद से उठ जाता है या फिर एकाएक चौंक जाता है तो यह स्लीप एप्निया का संकेत हो सकता है। इसमें शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई कम होने लगती है। इससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक और हाई ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

क्या खर्राटे की समस्या से निजात पाया जा सकता है?


अगर कोई व्यक्ति सोते समय खर्राटे लेता है तो यह न केवल उसकी हेल्थ के लिए बल्कि पास सो रहे व्यक्ति की नींद को भी खराब करता है। इसलिए इस समस्या से छुटकारा पाना जरूरी है। पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अनिमेष आर्य ने खर्राटे से छुटकारा पाने के कुछ उपाय बताए हैं।

खर्राटों से हैं परेशान ये आसान उपाय दिलाएंगे राहत

  • खाना खाने के बाद तुरंत न लेटें । कुछ देर जरूर टहलें ।
  • अगर आपका वजन ज्यादा है तो उसे कम करें।
  • सिगरेट और शराब से दूरी बनाएं।
  • पीठ के बल सोने के बजाय करवट लेकर सोएं।
  • सोने से पहले हैवी खाना खाने से बचें।
  • सिर के नीचे तकिया लगाकर सोएं।
  • बिस्तर पर जाने से पहले
  • अपनी नाक साफ करें।

खर्राटे और स्लीप एप्निया में क्या अंतर क्या है?

अगर कोई व्यक्ति खर्राटे ले रहा है और उसे सांस रुकने की समस्या नहीं हो रही है तो यह सामान्य स्थिति है। यह स्लीप एप्निया नहीं है। वहीं अगर खर्राटे के साथ कुछ संकेत दिखाई दें तो स्लीप एप्निया हो सकता है। जैसेकि-

  • सोते समय सांस में रुकावट या घुटन महसूस होना।
  • सुबह उठने के बाद कुछ देर तक सिरदर्द बना रहना।
  • नींद के दौरान सांस रुकने की वजह से बार-बार जागना।
  • खर्राटों की आवाज सामान्य से तेज होना।
  • सुबह उठने के बाद मुंह या गला सूखा हुआ महसूस होना।

क्या स्लीप एप्निया की वजह से किसी की जान भी जा सकती है


सोते समय सांस रुकने के कारण शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। इससे दिल, दिमाग और अन्य अंगों पर गंभीर असर पड़ सकता है। नींद के दौरान बॉडी में ऑक्सीजन लेवल कम होने से हार्ट पर दबाव पड़ता है। ऐसे में स्लीप एप्निया मरीजों में हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। अगर समय पर इसका इलाज नहीं किया गया तो ये जानलेवा भी हो सकता है।

अगर सोते समय खर्राटे के साथ सांस रुक रही है तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए?


अगर किसी व्यक्ति की नींद खर्राटे के साथ टूट रही है तो उसे तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए। इसके लिए डॉक्टर एक स्लीप टेस्ट करते हैं। इसमें रात में सोते समय एक मशीन लगाकर देखा जाता है कि व्यक्ति की नींद कितनी बार टूट रही है। उसके शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई कब कम हुई है। कार्बन डाई ऑक्साइड का लेवल कब बढ़ा है। इसी टेस्ट के रिजल्ट के अनुसार ट्रीटमेंट किया जाता है।

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Unlock 7 Levels of Peak Fitness & Mental Strength-क्रिस्टियानो रोनाल्डो के साथ https://healthdarbar.com/fitness-mental-strength/ https://healthdarbar.com/fitness-mental-strength/#respond Mon, 31 Mar 2025 07:15:54 +0000 https://healthdarbar.com/?p=4514

क्या आप 40 साल की उम्र में भी 14 साल जैसी Fitness और एनर्जी चाहते हैं? क्या आप जानना चाहते हैं कि दुनिया के सबसे फिट फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो आखिर ऐसा क्या करते हैं जो उन्हें सुपरह्यूमन बनाता है? तो इस वीडियो को अंत तक देखें

रोनाल्डो की डाइट – हाई-प्रोटीन और सुपर हेल्दी फूड प्लान

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रोनाल्डो का मानना है: “आपका शरीर वही बनता है जो आप खाते हैं!” वह अपनी फिटनेस और एनर्जी को बनाए रखने के लिए एक सख्त और बैलेंस्ड डाइट फॉलो करते हैं, जिसमें उच्च गुणवत्ता वाला लीन प्रोटीन (जैसे चिकन, मछली, अंडे), हेल्दी कार्ब्स (ब्राउन राइस, होल ग्रेन ब्रेड, क्विनोआ) और गुड फैट्स (अखरोट, बादाम, एवोकाडो, जैतून का तेल) शामिल होते हैं। उनका डाइट प्लान इस तरह डिजाइन किया गया है कि वह दिनभर ऊर्जावान बने रहें और उनका प्रदर्शन टॉप लेवल पर रहे। वह दिन में 6 छोटे-छोटे मील्स खाते हैं, जिससे उनका मेटाबॉलिज्म तेज बना रहता है और शरीर को लगातार ऊर्जा मिलती रहती है। लंबे समय तक भूखे रहने से शरीर सुस्त पड़ सकता है और परफॉर्मेंस प्रभावित हो सकती है, इसलिए वह इस आदत से बचते हैं। साथ ही, वह जंक फूड और अधिक शुगर वाले प्रोसेस्ड फूड से पूरी तरह दूर रहते हैं, क्योंकि यह शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं और उनकी फिटनेस पर बुरा असर डाल सकते हैं। हाइड्रेशन को लेकर भी वह बेहद सतर्क रहते हैं और पूरे दिन खूब पानी पीते हैं, जिससे उनका शरीर हाइड्रेटेड और मसल्स एक्टिव बने रहते हैं। इसके अलावा, वह सॉफ्ट ड्रिंक्स से पूरी तरह परहेज करते हैं, क्योंकि इनमें मौजूद शुगर और केमिकल्स शरीर के लिए सही नहीं होते।

उनका सीक्रेट टिप यह है कि हर सुबह गुनगुना पानी और नींबू पीने से शरीर डिटॉक्स होता है, पाचन तंत्र मजबूत होता है और मेटाबॉलिज्म भी बूस्ट होता है, जिससे दिन की शुरुआत एनर्जेटिक तरीके से होती है!

रोनाल्डो की डाइट चार्ट

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रोनाल्डो की डाइट बेहद संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जो उनकी फिटनेस और एनर्जी को बनाए रखने में मदद करती है। वह अपने दिन की शुरुआत अंडे की सफेदी, एवोकाडो, चीज़, फल और होल ग्रेन ब्रेड के हेल्दी नाश्ते से करते हैं, जिससे उन्हें भरपूर प्रोटीन, हेल्दी फैट्स और एनर्जी मिलती है। मिड-मॉर्निंग में वह ताजे फल, ग्रीक योगर्ट और ड्राई फ्रूट्स का सेवन करते हैं, जो उनके मेटाबॉलिज्म को तेज बनाए रखता है और पूरे दिन एक्टिव रहने में मदद करता है। लंच में उनकी प्लेट में ग्रिल्ड चिकन, ब्राउन राइस और सलाद होता है, जो प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होता है और मसल्स रिकवरी में मदद करता है। शाम के नाश्ते में वह टूना सैंडविच या प्रोटीन शेक लेते हैं, जिससे उन्हें वर्कआउट के बाद जरूरी न्यूट्रिशन मिलता है। डिनर के लिए वह ग्रिल्ड फिश, सब्जियां और सूप लेना पसंद करते हैं, जिससे हल्का लेकिन पोषक तत्वों से भरपूर भोजन मिलता है। देर रात के स्नैक के रूप में वह हल्का प्रोटीन स्नैक, जैसे बादाम या दही खाते हैं, जिससे मसल्स रिकवरी तेज होती है और शरीर को नींद के दौरान जरूरी पोषण मिलता है।

उनका सीक्रेट टिप यह है कि वह रेड मीट और प्रोसेस्ड फूड से पूरी तरह बचते हैं, क्योंकि यह शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है और परफॉर्मेंस को प्रभावित कर सकता है!

वर्कआउट रूटीन – हर दिन 3-4 घंटे की एक्सरसाइज

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• फुटबॉल ट्रेनिंग: हर दिन 3-4 घंटे की ट्रेनिंग जिसमें स्प्रिंटिंग, बॉल कंट्रोल और स्ट्रेटेजी प्लानिंग होती है।

• कार्डियो वर्कआउट: 30 मिनट की हाई-इंटेंसिटी रनिंग, साइक्लिंग और स्विमिंग

• वेट ट्रेनिंग: डेडलिफ्ट, बेंच प्रेस, स्क्वाट और लेग प्रेस

• कोर ट्रेनिंग: रोज़ाना 1000 से ज्यादा क्रंचेस और प्लैंक्स

• रिकवरी एक्सरसाइज: योग, स्ट्रेचिंग और बर्फ से स्नान (Ice Bath)

💡 सीक्रेट टिप: वह हफ्ते में 5 दिन कड़ी ट्रेनिंग करते हैं और 2 दिन हल्की एक्सरसाइज पर ध्यान देते हैं।

नींद और रिकवरी – सुपरह्यूमन एनर्जी का राज़

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रोनाल्डो की नींद लेने की तकनीक भी उनकी फिटनेस की तरह खास है। वह रात को 7-8 घंटे की नींद तो लेते हैं, लेकिन पारंपरिक तरीके से नहीं। वह एक बार में लंबी नींद लेने के बजाय दिनभर में 5 छोटे नैप्स (Power Naps) लेते हैं, जिससे उनका शरीर जल्दी रिकवर कर सके और मसल्स मजबूत बने रहें। यह तकनीक न केवल उनकी एनर्जी को बनाए रखने में मदद करती है, बल्कि उनकी परफॉर्मेंस को भी बेहतर बनाती है। वह अपनी नींद की क्वालिटी का खास ध्यान रखते हैं, इसलिए उनके बेडरूम में ब्लू लाइट नहीं होती, जिससे मेलाटोनिन हार्मोन का स्तर सही बना रहता है और गहरी नींद आती है। इसके अलावा, वह सोने से पहले फोन या टीवी से दूर रहते हैं, ताकि स्क्रीन की रोशनी और डिजिटल डिस्ट्रैक्शन उनकी नींद को प्रभावित न करे। उनकी यह आदतें न सिर्फ उनके शरीर को पूरी तरह रिचार्ज करती हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी उन्हें तरोताजा बनाए रखती हैं।

सीक्रेट टिप: सोने से 2 घंटे पहले डिजिटल स्क्रीन बंद कर दें ताकि नींद अच्छी आए।

मानसिक मजबूती – चैंपियन माइंडसेट

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• रोनाल्डो कहते हैं: “मेरा सबसे बड़ा हथियार मेरा माइंडसेट है!”

• वह रोज़ाना मेडिटेशन और विज़ुअलाइज़ेशन (Future Goals की कल्पना) करते हैं।

• हारने के डर से नहीं डरते, बल्कि हर बार खुद को सुधारने की कोशिश करते हैं।

💡 सीक्रेट टिप: हर दिन 5 मिनट अपने लक्ष्यों की कल्पना करें, इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा!

अच्छी सेहत और मेंटल हेल्थ के लिए ये 5 एक्स्ट्रा टिप्स!

धूप में समय बिताएं (Sunlight Therapy) ☀

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• रोज़ाना 15-20 मिनट धूप में बैठें, इससे विटामिन D मिलेगा और मूड अच्छा रहेगा।

• हड्डियां मजबूत होंगी और डिप्रेशन कम होगा।

गहरी सांस लें (Deep Breathing) 🧘‍♂️

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• रोज़ 5 मिनट गहरी सांस लें (प्राणायाम), इससे ब्रेन रिलैक्स होगा।

• तनाव और चिंता कम होगी, फोकस बढ़ेगा।

नेचर के करीब रहें (Nature Therapy) 🌿

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• वीक में 1-2 बार पार्क या पहाड़ों में जाएं।

• प्रकृति में समय बिताने से स्ट्रेस कम होता है और मानसिक शांति मिलती है।

सोशल कनेक्शन बनाए रखें (Good Relationships) 🤝

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• दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताएं।

• अकेलापन मेंटल हेल्थ को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए पॉजिटिव लोगों के साथ रहें।

नई चीजें सीखें (Lifelong Learning) 📖

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• रोज़ कुछ नया सीखें – कोई नई भाषा, स्किल या किताब पढ़ें।

• दिमाग एक्टिव रहेगा और याददाश्त तेज होगी।

रोनाल्डो से सीखें ये तीन बातें!

डाइट पर पूरा ध्यान दें – हेल्दी फूड खाएं, जंक फूड से बचें।

रेगुलर एक्सरसाइज करें – हफ्ते में 5-6 दिन कड़ी ट्रेनिंग करें।

अच्छी नींद लें – शरीर को रिकवर करने के लिए भरपूर आराम जरूरी है।

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15 Harmful Foods That Can Trigger Severe Constipation | सुबह पेट साफ करने के लिए क्या खाएं? https://healthdarbar.com/foods-that-can-trigger-severe-constipation/ https://healthdarbar.com/foods-that-can-trigger-severe-constipation/#respond Mon, 31 Mar 2025 05:47:35 +0000 https://healthdarbar.com/?p=4520

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में 21% लोगों को Constipation (कब्ज) है। 2018 के गट हेल्थ सर्वे के मुताबिक भारत में 22% वयस्क Constipation से पीड़ित हैं। इनमें से 59% लोगों को गंभीर Constipation की शिकायत है।

हमारी खराब लाइफस्टाइल इसकी प्रमुख वजह है। इसकी बुनियाद में हमारा भोजन है। खाने का हर कौर तय करता है कि Constipation होगा या नहीं। अगर भोजन में पर्याप्त मात्रा में फाइबर नहीं है तो यह Constipation का कारण बन सकता है। पर्याप्त पानी नहीं पीने से भी यह समस्या हो सकती है। इसके कारण पेट में सूजन, गैस और दर्द हो सकता है।

Constipation के कारण पेट साफ नहीं होने से शारीरिक और मानसिक सेहत प्रभावित होती है। इससे रोजमर्रा के काम प्रभावित हो सकते हैं। ऑफिस के काम में भी प्रोडक्टिविटी कम हो सकती है।

इसलिए आज कब्ज की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • कब्ज के क्या लक्षण हैं?
  • किन फूड्स के कारण कब्ज होता है?
  • कब्ज से निजात पाने के लिए क्या खाना चाहिए।

कब्ज क्या है?

Foods That Can Trigger Severe Constipation

कब्ज एक आम समस्या है, जिसका सीधा संबंध हमारे खानपान और जीवनशैली से होता है। जब हमारी आंतें सुचारू रूप से काम नहीं करतीं, तो मल त्याग में कठिनाई होती है और पेट पूरी तरह साफ नहीं हो पाता। इसे सरल शब्दों में समझें तो हमारा पाचन तंत्र धीमा पड़ जाता है, जिससे मल कठोर और सूखा हो जाता है और बाहर निकालना मुश्किल हो जाता है। जब हम भोजन करते हैं, तो यह छोटी आंत से होते हुए बड़ी आंत में पहुंचता है, जहां से छोटी आंत पोषक तत्वों को अवशोषित कर लेती है और बाकी बचा हुआ पदार्थ बड़ी आंत में चला जाता है। बड़ी आंत का मुख्य कार्य इसमें से पानी सोखना और इसे मल के रूप में बदलना होता है। लेकिन अगर भोजन में फाइबर की मात्रा कम हो, पानी का सेवन पर्याप्त न हो, या शारीरिक गतिविधि कम हो, तो भोजन पाचन तंत्र में बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। इस दौरान बड़ी आंत मल से ज्यादा पानी सोख लेती है, जिससे यह कठोर और सूखा हो जाता है और आंतों में फंस सकता है। कब्ज के मुख्य कारणों में फाइबर और पानी की कमी, शारीरिक गतिविधि की अनुपस्थिति, अत्यधिक प्रोसेस्ड फूड का सेवन, मानसिक तनाव और कुछ दवाइयों का असर शामिल हैं। इससे बचने के लिए फाइबर युक्त आहार लें, पर्याप्त पानी पिएं, नियमित व्यायाम करें, प्रोबायोटिक्स का सेवन करें, तनाव कम करें और भोजन का सही समय निर्धारित करें। अगर कब्ज लंबे समय तक बनी रहती है, तो डॉक्टर से परामर्श लेना आवश्यक है। सही खानपान और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर इस समस्या से बचा जा सकता है।

कब्ज के क्या लक्षण हैं?

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कब्ज का सामान्य लक्षण यह है कि रोज़ पेट साफ नहीं हो रहा होता और जब बाउल मूवमेंट होता है, तो पूप बहुत टाइट और कठोर होता है। इसके अलावा, कब्ज के अन्य लक्षणों में रोज़ बाउल मूवमेंट न होना, मल त्याग में कठिनाई या दर्द महसूस होना, मल त्याग के बाद भी पेट में भारीपन बना रहना, दिनभर भूख न लगना, पेट में दर्द या ऐंठन होना, और पेट में मरोड़ या मतली महसूस होना शामिल हैं। ये सभी लक्षण कब्ज के संकेत हो सकते हैं, जो शरीर में आंतों की धीमी गति और पाचन तंत्र की समस्याओं को दर्शाते हैं।

15 चीजें, जिन्हें खाने से होता है कब्

कब्ज का बुनियादी कारण हमारा भोजन होता है। कुछ फूड्स कब्ज की वजह बनते हैं, जबकि कुछ चीजें खाने से कब्ज दूर होता है और पेट अच्छे से साफ होता है। डॉ के मुताबिक, ये 15 चीजें खाने या पीने से कब्ज की शिकायत हो सकती है।

केला

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कच्चे केले में स्टार्च की मात्रा अधिक होती है, जिसे पचाना मुश्किल होता है और यह मल को कठोर बना सकता है, जिससे कब्ज हो सकता है। हालांकि, पका हुआ केला फाइबर से भरपूर होता है और पाचन में मदद करता है।

दूध

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दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स (जैसे दही, पनीर, मक्खन) में लैक्टोज पाया जाता है, जो कुछ लोगों के लिए पचाना मुश्किल हो सकता है और इससे कब्ज की समस्या हो सकती है।

च्युइंगम

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च्युइंगम में आर्टिफिशियल स्वीटनर और प्रिजर्वेटिव होते हैं, जो पाचन तंत्र को धीमा कर सकते हैं। अगर इसे अधिक मात्रा में निगल लिया जाए, तो यह आंतों में फंस सकता है और कब्ज पैदा कर सकता है।

रेड मीट

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रेड मीट में प्रोटीन और फैट की मात्रा अधिक होती है, लेकिन फाइबर बहुत कम होता है। इसे पचाने में ज्यादा समय लगता है, जिससे कब्ज की संभावना बढ़ जाती है।

चॉकलेट

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चॉकलेट में उच्च मात्रा में फैट और शुगर होती है, जो पाचन को धीमा कर सकती है और कब्ज को बढ़ा सकती है। खासकर, जिन लोगों को पहले से ही कब्ज की समस्या होती है, उन्हें चॉकलेट से बचना चाहिए।

बर्गर, पिज्जा

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फास्ट फूड जैसे बर्गर और पिज्जा में अत्यधिक मात्रा में फैट, प्रोसेस्ड चीज़ और रिफाइंड आटा (मैदा) होता है, जिससे पाचन तंत्र धीमा पड़ सकता है और कब्ज की समस्या हो सकती है।

लहसुन

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लहसुन वैसे तो पाचन के लिए अच्छा माना जाता है, लेकिन कुछ लोगों के लिए यह पेट में गैस और ऐंठन का कारण बन सकता है, जिससे कब्ज बढ़ सकता है।

कॉफी

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कॉफी में कैफीन होता है, जो शरीर को डिहाइड्रेट कर सकता है। कम पानी पीने से मल सख्त हो जाता है, जिससे कब्ज की समस्या हो सकती है। हालांकि, कुछ लोगों के लिए कॉफी हल्के रेचक (laxative) की तरह भी काम कर सकती है।

पनीर

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पनीर में फाइबर बहुत कम और फैट अधिक होता है, जिससे यह आंतों में धीरे-धीरे पचता है और कब्ज का कारण बन सकता है।

व्हाइट ब्रेड

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सफेद ब्रेड (मैदे से बनी) में फाइबर की मात्रा बहुत कम होती है, जिससे यह आंतों में धीमी गति से आगे बढ़ती है और कब्ज की समस्या उत्पन्न कर सकती है।

शराब

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शराब शरीर को डिहाइड्रेट कर सकती है, जिससे मल कठोर हो जाता है और कब्ज हो सकता है। इसके अलावा, शराब का अधिक सेवन आंतों की मांसपेशियों की कार्यक्षमता को भी प्रभावित करता है।

चिप्स

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चिप्स में ज्यादा मात्रा में फैट और नमक होता है, लेकिन फाइबर बिल्कुल नहीं होता। अधिक चिप्स खाने से आंतों में सूखापन आ सकता है, जिससे मल त्याग में कठिनाई हो सकती है।

अंडा

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अंडे में प्रोटीन अधिक और फाइबर कम होता है। अगर आहार में पर्याप्त मात्रा में फाइबर नहीं है और अंडे अधिक मात्रा में खाए जा रहे हैं, तो कब्ज की समस्या हो सकती है।

प्याज

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प्याज में कुछ ऐसे यौगिक होते हैं, जो कुछ लोगों में पेट की समस्याएं बढ़ा सकते हैं, जिससे गैस, सूजन और कब्ज हो सकता है।

आयरन और कैल्शियम सप्लीमेंट्स

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आयरन और कैल्शियम सप्लीमेंट्स आंतों की गति को धीमा कर सकते हैं, जिससे मल कठोर हो जाता है और कब्ज हो सकता है। खासकर, जो लोग आयरन की गोलियां लेते हैं, उन्हें ज्यादा पानी और फाइबर युक्त आहार लेने की सलाह दी जाती है।

कब्ज से जुड़़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब

सवाल: क्या कब्ज या कॉन्स्टिपेशन डरने की बात है?

जवाब: नहीं, कब्ज बहुत आम बात है। दुनिया के लगभग सभी लोगों को जीवन में कभी-कभी कब्ज की शिकायत होती है। लाइफस्टाइल खराब होने से या पर्याप्त फाइबर वाला भोजन नहीं खाने से कब्ज हो सकता है। अगर किसी को बार-बार कब्ज हो रहा है तो इसका मतलब है कि पाचन तंत्र ठीक नहीं है या फूड च्वॉइस बहुत खराब है।

अगर किसी को बहुत लंबे समय से कब्ज बना हुआ है तो इसकी वजह कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या भी हो सकती है। ऐसे में कब्ज इग्नोर करने की बजाए डॉक्टर से कंसल्ट करें।

सवाल: क्या ज्यादा फाइबर खाने से भी कब्ज हो सकता है?

जवाब: अगर भोजन में इनसॉल्यूएबल फाइबर की मात्रा बहुत ज्यादा है तो इससे बाउल मूवमेंट बहुत धीमा हो सकता है। इसके कारण पेट से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं और कब्ज हो सकता है।

आमतौर पर क्रॉनिक कॉन्स्टिपेशन होने पर बहुत ज्यादा फाइबर वाले फूड्स से कब्ज की समस्या बढ़ती है। ऐसे मामलों में डाइट में फाइबर फूड्स शामिल करने से पहले डॉक्टर से कंसल्ट करें।

सवाल: कब्ज होने पर किन फूड्स को अवॉइड करना चाहिए?

जवाब: अगर किसी को कब्ज की समस्या है तो उसे ऐसे फूड्स अवॉइड करने चाहिए, जिनमें फैट ज्यादा होता है और फाइबर कम होता है-

  • प्रोसेस्ड फूड्स- चिप्स, बिस्किट, नमकीन।
  • अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड्स- बर्गर, पिज्जा।
  • डेयरी प्रोडक्ट्स- दूध, पनीर।
  • रेड मीट।

इनमें फैट बहुत ज्यादा होता है और फाइबर कम होता है। इसलिए इनके पाचन में मुश्किल होती है और कब्ज हो सकता है।

सवाल: क्या बादाम वाला दूध पीने से भी कब्ज हो सकता है?

जवाब: बादाम वाला दूध आमतौर पर सुरक्षित होता है। बादाम में फैट काफी होता है और थोड़ा फाइबर भी होता है। आमतौर पर बादाम कब्ज की मुख्य वजह नहीं है। हालांकि, बाजार से बादाम वाला दूध खरीद रहे हैं तो इसमें मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट जैसे केमिकल्स और फोर्टिफायर के कारण कब्ज हो सकता है।

सवाल: क्या चिकन खाने से कब्ज हो सकता है?

जवाब: चिकन हमेशा कब्ज का कारण नहीं बनता क्योंकि इसमें लीन प्रोटीन के साथ थोड़ा फाइबर भी होता है। हालांकि, इसका मतलब यह भी नहीं है कि चिकन खाने से कब्ज में राहत मिल सकती है। अगर चिकन खा रहे हैं तो कब्ज से बचने के लिए भोजन में सब्जियां, साबुत अनाज और फल भी शामिल करना चाहिए। साथ ही दिन में 7-8 गिलास पानी पीना चाहिए।

सवाल: क्या खाने से कब्ज में राहत मिल सकती है?

जवाब: ये सभी चीजें खाने से कब्ज में राहत मिल सकती है-

फल: पपीता, सेब, अन्नानास, कीवी, अंगूर और अमरूद।

सब्जियां: गाजर, पालक, नींबू, पत्तागोभी, ब्रॉकली, चुकंदर और भिंडी।

सीड्स: चिया सीड्स, फ्लेक्स सीड्स, पंपकिन सीड्स, स्प्राउट्स।

अनाज: ओट्स, चोकर वाला आटा।

डेयरी प्रोडक्ट्स: छाछ, दही और घी।

सवाल: कब्ज होने पर कब डॉक्टर से कंसल्ट करना जरूरी है?

जवाब: इन कंडीशन में कब्ज होने पर डॉक्टर से जरूर कंसल्ट करें-

  • अगर दवा लेने के बाद भी कब्ज खत्म नहीं हो रहा है।
  • अगर लाइफस्टाइल सुधारने और फाइबर फूड खाने पर भी कब्ज बना रहता है।
  • अगर बार-बार कब्ज की समस्या हो रही है।
  • अगर कब्ज के साथ पेट में दर्द हो रहा है।
  • अगर कब्ज के साथ मल में खून आ रहा है।
  • अगर कब्ज के साथ उल्टी जैसे अन्य लक्षण दिख रहे हैं।

तो दोस्तों ये थी हमारी एक इंट्रेस्टिंग वीडियो आशा करता हूं आपको यह वीडियो जरूर पसंद आई होगी इसीलिए प्लीज इसे लाइक करें, हमारे चैनल Fitness Secret को सब्सक्राइब जरूर करें और Visit on Health Darbar

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अर्ली टू बेड एंड अर्ली टू राइज, मेक्स ए मैन हेल्दी, वेल्दी एंड वाइज।” (रात में जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने से व्यक्ति स्वस्थ, समृद्ध और बुद्धिमान होता है।) महान अमेरिकी लेखक और वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन का ये कथन आपने भी सुना होगा। बेंजामिन को संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) का फाउंडिंग फादर भी कहा जाता है।

हालांकि, सही sleep time (सोने का समय) हमेशा विवादों में रहा है। इसके बावजूद रात 8 बजे से सुबह 4 बजे का sleep time सबसे अच्छा माना जाता है। दुनिया के ज्यादातर सफल लोग रात में 8 बजे सोते हैं और सुबह 4 बजे उठते हैं।

यह हमारी बॉडी की इंटरनल नेचुरल क्लॉक यानी सर्केडियन रिद्म के मुताबिक भी एकदम परफेक्ट sleep time है। इस क्लॉक की मदद से शरीर यह तय करता है कि उसे कब सोना और कब जागना है। ये क्लॉक यह भी याद दिलाती है कि किस समय कौन सा काम करना है।

इस sleep time को अपनाने से अच्छी नींद आती है, शारीरिक और मानसिक सेहत सुधरती है, और दिन में काम करने के लिए दूसरों के मुकाबले ज्यादा समय मिलता है।

इसलिए Fitness Secret में आज जानेंगे कि रात में 8 बजे सोने और सुबह 4 बजे उठने के क्या फायदे हैं। साथ ही जानेंगे कि-

  • ये रुटीन फॉलो करने से क्या फायदे होंगे?
  • इसे बरकरार रखने के लिए क्या करना चाहिए?

फॉलो करें नेचुरल क्लॉक

Best Sleep Time

प्रकृति के कुछ तय नियम हैं। दिन में सूरज उगने पर उजाले में सारे काम करने होते हैं। सूरज डूबने के बाद अंधेरा होने पर रात का समय सोने के लिए है। अगर सभी काम इस प्राकृतिक नियम के मुताबिक किए जाएं तो सकारात्मक परिणाम मिलते हैं और स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।

हमारी बॉडी की नेचुरल क्लॉक भी प्रकृति के इसी नियम को फॉलो करती है। इसके मुताबिक, रोज रात 8 बजे से सुबह 4 बजे तक सोने से स्लीप क्वालिटी इंप्रूव होती है और सेहत में सुधार होता है।

रोज 8 से 4 बजे तक सोने से होंगे कई फायद

Best Sleep Time

अगर कोई व्यक्ति रोज रात के 8 बजे से सुबह 4 बजे तक सो रहा है तो उसकी जिंदगी और सेहत में बहुत सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। इससे मेमोरी पावर बढ़ती है और कॉन्संट्रेशन इंप्रूव होता है।

स्लीप क्वालिटी सुधरती है

Best Sleep Time

अगर सोने का समय नेचुरल लाइट-डार्कनेस के साइकल के अनुसार हो तो ज्यादा गहरी और आरामदायक नींद आती है। जल्दी सोने से नींद के दौरान हमारा शरीर ज्यादा समय तक रैपिड आई मूवमेंट (REM) स्लीप में रहता है। रैपिड आई मूवमेंट नींद की अंतिम स्टेज है। चूंकि नींद के दौरान हमारा शरीर अंदरूनी मरम्मत करता है, इसलिए नींद में यह स्टेज शारीरिक और मानसिक सुधार के लिए बहुत जरूरी है।

एनर्जी लेवल इंप्रूव होता है

Best Sleep Time

जल्दी सोने और जल्दी जागने से हम पूरे दिन खुद को ऊर्जावान महसूस करते हैं। असल में शरीर को नींद में अपनी मरम्मत के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए यह अगले दिन ज्यादा फोकस और सतर्कता से काम करता है।

हॉर्मोनल रेगुलेशन सुधरता है

नींद के लिए जरूरी हॉर्मोन मेलाटोनिन शाम के समय बढ़ रहा होता है। इसलिए शाम को आसानी से नींद आ जाती है। रात होने पर यह हॉर्मोन जैसे-जैसे बढ़ता है, हमारी नींद गहरी होती जाती है। इसके अलावा कॉर्टिसोल रेगुलेशन में भी मदद मिलती है, जिससे हम सुबह ज्यादा अटेंटिव और तरोताजा महसूस करते हैं।

मेटाबॉलिज्म सुधरता है

Best Sleep Time

जल्दी सोने से मेटाबॉलिक सिस्टम में भी सुधार होता है। इससे रात में भूख नहीं लगती है और पाचन भी आसान हो जाता है। शाम को जल्दी खाने और सोने से शरीर भोजन को ज्यादा बेहतर ढंग से पचाता है और इसमें मौजूद न्यूट्रिएंट्स का इस्तेमाल भी बेहतर तरीके से करता है।

जल्दी सोने और जागने से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब

डिनर जल्दी करने से नींद और सेहत पर क्या असर होता है?

रात का खाना जल्दी खाने से शरीर को सोने से पहले भोजन पचाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इससे नींद के दौरान डिस्कंफर्ट, एसिड रिफ्लक्स या अपच जैसी समस्या नहीं होती है। रात में देर से खाने पर ये समस्याएं नींद में खलल डाल सकती हैं।

अगर सोने से 2 घंटे पहले भोजन कर लेते हैं तो बेड पर जाने से पहले ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में होता है। इससे रात में नींद खुलने का जोखिम कम हो जाता है।

इससे सोते समय शरीर को भोजन पचाने की टेंशन नहीं रहती है। इसका फायदा यह होता है कि शरीर अपना पूरा ध्यान सेलुलर रिपेयरिंग और हॉर्मोनल रेगुलेशन पर कॉन्संट्रेट कर पाता है।

सोने से पहले मोबाइल और लैपटॉप से दूर रहने को क्यों कहा जाता है?

मोबाइल, लैपटॉप या टीवी से निकल रही रोशनी शरीर में नींद के लिए जरूरी हॉर्मोन मेलाटोनिन नहीं बनने देती है। इससे नींद में खलल पड़ सकता है। अगर देर रात तक मोबाइल या लैपटॉप इस्तेमाल कर रहे हैं तो बेड पर जाने के बहुत देर बाद भी नींद नहीं आती है।

किन कारणों से स्लीप क्वालिटी प्रभावित हो सकती है?

स्ट्रेस, डिप्रेशन, कमजोरी, विटामिन-D की कमी, खराब लाइफस्टाइल और अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड से नींद डिस्टर्ब हो सकती है। शराब पीने और स्मोकिंग की आदत से भी स्लीप क्वालिटी प्रभावित होती है।

अच्छी नींद के लिए क्या कर सकते हैं?

अच्छी नींद के लिए हमारा डेली रुटीन सही होना जरूरी है। अगर यह गड़बड़ है तो इसमें जरूरी बदलाव करने चाहिए। सबसे पहले सोने-जागने का एक समय तय करना चाहिए। रात 8 से सुबह 4 बजे का समय नींद के लिए बेस्ट टाइम है। इसके अलावा भी कुछ जरूरी बातें हैं, जिन्हें फॉलो करें-

  • इलेक्ट्रिक गैजेट्स का कम-से-कम इस्तेमाल करें।
  • सुबह-शाम कुछ देर खुली हवा में टहलें।
  • यार-दोस्तों से बातचीत करें, मन की बातें शेयर करें।
  • रोज हल्की-फुल्की एक्सरसाइज जरूर करें।
  • शराब-सिगरेट और हर तरह के नशे से दूरी बनाएं।
  • दिन में चाय या कॉफी ज्यादा न पिएं।
  • सूर्यास्त के बाद घर में तेज रोशनी वाला बल्ब न जलाएं।
  • 8 बजे सोने वाले हैं तो डिनर 6 बजे ही कर लें।
  • डिनर के बाद मोबाइल और लैपटॉप इस्तेमाल न करें।

रात 8 से सुबह 4 बजे तक नींद को डेली रुटीन का हिस्सा कैसे बनाएं?

कोई काम अचानक एक दिन में नहीं होता है। अगर रोज रात 8 बजे सोना चाहते हैं तो कुछ दिन तक साढ़े 7 बजे ही सोने के लिए बेड पर जाना होगा। जैसे ही थोड़े दिन तक यह शेड्यूल फॉलो करेंगे तो शरीर इस टाइम के साथ खुद को अलाइन कर लेगा। हमारी इंटरनल नेचुरल क्लॉक भी सोने के लिए यही टाइम सेव कर लेगी। फिर रोज 8 बजने से पहले ही नींद आनी शुरू हो जाएगी।

हमारा शरीर सांकेतिक भाषा समझता है। इसके लिए रोज सोने से पहले कुछ देर म्यूजिक सुन सकते हैं। कुछ दिन बीतने पर आप जैसे ही शाम को म्यूजिक सुनेंगे तो शरीर को समझ आ जाएगा कि सोने का समय हो गया है और नींद आने लगेगी।

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Why BMI Fails: The 6 Hidden Truth About Obesity, आज से ही वजन घटाना शुरू करें https://healthdarbar.com/why-bmi-fails/ https://healthdarbar.com/why-bmi-fails/#respond Fri, 28 Mar 2025 12:34:05 +0000 https://healthdarbar.com/?p=4523

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, मोटापा एपिडेमिक बन गया है। एपिडेमिक का मतलब है ऐसी बीमारी, जो दुनिया में बहुत तेजी से फैल रही है। मोटापे की वजह से जानलेवा बीमारियों की जद में आकर हर साल 28 लाख वयस्कों की मौत हो रही है।

भारत और दुनिया के सभी देश मोटापे को लेकर चिंतित हैं। WHO भी इसे लेकर फिक्रमंद है। पूरी दुनिया के डॉक्टर्स को लगता है कि मोटापे को अब हल्के में नहीं लिया जा सकता। इसे ज्यादा ठीक ढंग से समझने की जरूरत है। इसलिए अब मोटापे को आइडेंटीफाई करने के तरीके को भी पहले से ज्यादा साइंटिफिक बनाने पर जोर दिया जा रहा है।

भारत में डॉक्टर पिछले 15 सालों से मोटापे का पता लगाने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (BMI) टूल का इस्तेमाल करते रहे हैं। BMI शरीर के वजन (किलोग्राम) और लंबाई (मीटर) के अनुपात से निकाला जाने वाला एक गणितीय सूत्र है। यह बताता है कि व्यक्ति अंडरवेट, नॉर्मल, ओवरवेट या मोटापे की श्रेणी में आता है। आमतौर पर 25 से ऊपर का BMI ओवरवेट और 30 से ऊपर का मोटापे का संकेत देता है।

लेकिन अब इसे लेकर नई गाइडलाइंस आई हैं। अब मोटापे का पता लगाने के लिए BMI का इस्तेमाल सिर्फ एक सपोर्ट मॉनीटरिंग टूल की तरह होगा। यानी इसे मोटापे का अकेला मापदंड नहीं माना जाएगा, बल्कि अन्य फैक्टर्स जैसे शरीर में फैट का प्रतिशत, मसल्स मास, कमर-हिप रेशियो और मेटाबॉलिक हेल्थ को भी ध्यान में रखा जाएगा।

इसलिए ‘Fitness Secret’ में आज जानेंगे कि मोटापे की नई परिभाषा क्या है। साथ ही जानेंगे कि-

  • क्यों मोटापे का पता लगाने के लिए BMI काफी नहीं?
  • क्लिनिकल और प्रीक्लिनिकल ओबिसिटी क्या है?

मोटापे की नई परिभाषा क्या है?

लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रोनोलॉजी कमीशन में पूरी दुनिया के 58 एक्सपर्ट डॉक्टर्स ने मोटापे की नई परिभाषा दी है। अभी तक मोटापा पता करने के लिए पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो रहा BMI अब काफी नहीं होगा। डॉक्टर्स का मानना है कि इसे और ज्यादा सांइंटिफिक और क्लिनिकल तरीके से समझने की जरूरत है।

रिसर्च में बताया गया है कि अगर मोटापे को ज्यादा साइंटिफिक ढंग से समझा जाए तो यह पहचानने में मदद मिलेगी कि किस तरह का मोटापा किन बीमारियों के लिए जोखिम बन सकता है। इससे हम उस दिशा में काम करके उन सभी बीमारियों का जोखिम टाल सकते हैं।

BMI में क्या कमियां हैं?

BMI की सबसे बड़ी कमी ये है कि इसमें फैट और मसल्स के बीच अंतर नहीं पता चलता है। मान लीजिए किसी व्यक्ति का BMI 30 है, लेकिन उसका यह वजन मसल्स और बोन डेंसिटी के कारण ज्यादा है। ऐसे में वह फिट होने के बावजूद BMI के मुताबिक मोटा है। जबकि, किसी दूसरे व्यक्ति की कमर के आसपास फैट जमा है, पर उसका BMI 24 ही है तो वह BMI मुताबिक फिट है।

BMI की इन खामियों को लेकर डॉक्टर्स ने कई बार सवाल उठाए हैं। इसके कारण कई लोगों को समय पर जरूरी ट्रीटमेंट नहीं मिल पाता है।

लोअर एब्डॉमिन में जमा फैट हाथ-पैर के फैट से ज्यादा खतरनाक

नई रिसर्च में स्पष्ट किया गया है कि कमर के आसपास जमा फैट या फिर लिवर और हार्ट में जमा फैट ज्यादा खतरनाक होता है। यह हाथ-पैर या स्किन के नीचे जमा फैट की तुलना में ज्यादा हेल्थ प्रॉब्लम्स खड़ी कर सकता है। इससे कई क्रॉनिक डिजीज का जोखिम हो सकता है।

मोटापे के लिए नई गाइडलाइंस क्या हैं?

दुनिया के सभी देश मोटापे की समस्या को गंभीरता से ले रहे हैं। यह आने वाले समय में बड़ा जोखिम बन सकता है। इससे कई गंभीर बीमारियों का जोखिम पैदा हो सकता है। इसलिए नई गाइडलाइंस में इसे दो स्टेज में बांटकर ट्रीटमेंट करने की सलाह दी गई है।

क्लिनिकल ओबिसिटी क्या है?

क्लिनिकल ओबिसिटी एक क्रॉनिक डिजीज है, जिसके कारण शरीर में जमा एक्स्ट्रा फैट के कारण ऑर्गन्स की फंक्शनिंग प्रभावित होने लगती है। रोजाना के कामकाज में मुश्किल होती है। रिसर्चर्स ने इसे पहचानने के लिए बच्चों और एडल्ट्स के लिए अलग-अलग क्राइटेरिया बनाए हैं। इसमें आमतौर पर जोड़ों का दर्द, सांस लेने में परेशानी, हार्ट फेल्योर, और ऑर्गन डिस्फंक्शन जैसे लक्षण दिखते हैं।

प्रीक्लिनिकल ओबिसिटी क्या है?

प्रीक्लिनिकल ओबिसिटी का मतलब है कि इस डिजीज के कारण अभी तक कोई हेल्थ प्रॉब्लम नहीं हुई है। हालांकि, इसकी वजह से टाइप-2 डायबिटीज, कार्डियोवस्कुलर डिजीज और कुछ कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ रहा है। इसके अलावा शरीर में एक्स्ट्रा फैट दिख रहा है। इसमें इस बात की बहुत गुंजाइश होती है कि अगर कुछ सुधार कर लिए जाएं तो गंभीर हेल्थ कंडीशंस का जोखिम टाला जा सकता है।

मोटापे से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब

सवाल: पूरी दुनिया में मोटापे से जुड़े आंकड़े क्या कहते हैं?

जवाब: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनिया में हर 8वां शख्स मोटापे से जूझ रहा है। यह बीमारी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि WHO इसे एपिडेमिक मान रहा है। मोटापा कार्डियोवस्कुलर डिजीज और कैंसर जैसी कई गंभीर बीमारियों के लिए रास्ता तैयार करता है।

सवाल: WHO मोटापे को लेकर इतना फिक्रमंद क्यों है?

जवाब: WHO के मुताबिक, मोटापा नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों का कारण बन सकता है। इससे दिल की बीमारी और फेफड़े के इन्फेक्शन का जोखिम भी बढ़ता है। हर साल पूरी दुनिया में करीब 28 लाख लोग अधिक वजन या मोटापे के कारण मौत का शिकार हो रहे हैं।

सवाल: मोटापे के कारण किन बीमारियों का जोखिम हो सकता है?

जवाब: मोटापे के कारण कई क्रॉनिक डिजीज का जोखिम बढ़ जाता है।

  • इससे 13 तरह के कैंसर हो सकते हैं।
  • टाइप-2 डायबिटीज हो सकती है।
  • कार्डियोवस्कुलर डिजीज हो सकती है।
  • स्ट्रोक हो सकता है।
  • हड्डियों से जुड़ी समस्या हो सकती है।
  • फर्टिलिटी क्षमता प्रभावित हो सकती है।

सवाल: मोटापा किन कारणों से बढ़ता है?

जवाब: मोटापे का सबसे बुनियादी कारण है, शरीर की रोजाना जरूरत से ज्यादा कैलोरी ग्रहण करना। इसके अलावा सिडेंटरी लाइफस्टाइल, लो फिजिकल एक्टिविटी, जंक फूड, अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड, शुगरी ड्रिंक्स और नींद की कमी जैसे कई कारण हैं।

सवाल: क्या मोटापा बढ़ने से कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है?

जवाब: हां, यह सच है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया के सभी बड़े डॉक्टर्स इस बारे में दुनिया को आगाह कर रहे हैं। इससे कई क्रॉनिक डिजीज का जोखिम बढ़ जाता है। मोटापे के कारण लगभग 13 तरह के कैंसर का जोखिम फिट लोगों की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है।

सवाल: क्या मोटापा बढ़ने से स्लीप एप्निया हो सकता है ?

जवाब: हां, मोटापा बढ़ने से स्लीप एप्निया भी हो सकता है। असल में स्लीप एप्निया की प्रमुख वजह मोटापा ही है। गले के आसपास फैट जमा होने से श्वसन नली दबने लगती है। इसलिए नींद के दौरान सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

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Exciting Summer Season is Approaching- मौसम बदलने पर बढ़ता बीमारियों का रिस्क https://healthdarbar.com/exciting-summer-season-is-approaching-%e0%a4%ae%e0%a5%8c%e0%a4%b8%e0%a4%ae-%e0%a4%ac%e0%a4%a6%e0%a4%b2%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%ac%e0%a4%a2%e0%a4%bc%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%ac/ https://healthdarbar.com/exciting-summer-season-is-approaching-%e0%a4%ae%e0%a5%8c%e0%a4%b8%e0%a4%ae-%e0%a4%ac%e0%a4%a6%e0%a4%b2%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%ac%e0%a4%a2%e0%a4%bc%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%ac/#respond Fri, 28 Mar 2025 11:01:14 +0000 https://healthdarbar.com/?p=4537

फरवरी खत्म हो गया है। मार्च के पहले सप्ताह में टेम्परेचर में और बदलाव होने की उम्मीद है। दिन में गर्मी और तेज होगी, वहीं अभी रात में हल्की ठंडक बनी रह सकती है।

गर्मी (Summer) का मौसम बदलने के साथ हमारे शरीर की जरूरतें भी बदलती हैं, इसलिए लाइफस्टाइल और खानपान में बदलाव करना बहुत जरूरी है।

गर्मी करीब आ रही है। ऐसे में तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण वायरल इन्फेक्शन और पाचन संबंधी समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए इस गर्मियों के मौसम में अपनी सेहत का खास ख्याल रखने की जरूरत है।

तो चलिए, आज Fitness Secret में बात करेंगे कि मौसम बदलने पर किन बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है? साथ ही जानेंगे कि-

  • मौसम बदलने पर लाइफस्टाइल और खानपान में क्या बदलाव जरूरी है?
  • इस मौसम में इन्फेक्शन और वायरल बीमारियों से कैसे बच सकते हैं?

मौसम बदलने पर बीमारियों का खतरा क्यों बढ़ता है?

Summer Season

फरवरी-मार्च के महीने में तापमान में काफी उतार-चढ़ाव होता है। बदलता मौसम शरीर के लिए आसान नहीं होता है। शरीर को नए वातावरण के साथ तालमेल बिठाने में थोड़ा वक्त लगता है। इस दौरान इम्यून सिस्टम पर दबाव पड़ता है, जिससे शरीर की बैक्टीरिया या वायरस से लड़ने की क्षमता प्रभावित होती है। इसके अलावा गर्मियों में हवा में नमी बढ़ जाती है, जिससे बैक्टीरिया के पनपने का खतरा अधिक रहता है।

मौसम बदलने पर किन बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है?

Summer Season

मौसम बदलने पर सर्दी, खांसी और फ्लू जैसे वायरल इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा गर्मियों में भोजन जल्दी खराब होने लगता है, जिससे डायरिया, पेट दर्द और अन्य पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। गर्मी बढ़ने के साथ ही शरीर में पानी की जरूरत बढ़ जाती है। पानी की कमी से डिहाइड्रेशन, सिरदर्द, चक्कर आना और थकावट जैसी समस्याएं हो सकती हैं। मौसम में बदलाव के कारण बॉडी क्लॉक पर भी असर पड़ता है, जिससे नींद भी प्रभावित हो सकती है।

मौसम बदलने पर बढ़ता इन बीमारियों का रिस्क

  • सांस संबंधी समस्याएं
  • वायरल बुखार
  • पाचन संबंधी समस्याएं
  • सनबर्न और स्किन इन्फेक्शन
  • सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD)
  • सर्दी-खांसी और फ्लू

बदलते मौसम में सेहत कैसे बचाएं

Summer Season

मौसम बदलने के साथ हमें अपनी दिनचर्या और लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करने की जरूरत होती है। इससे हम मौसमी बीमारियों और वायरल इन्फेक्शन से बच सकते हैं।

मौसम बदलने के साथ इन 7 आदतों में करें बदलाव

  • सुबह-शाम हल्की 1 ठंडक होने पर ठंड से बचाव करें।
  • ज्यादा मिर्च-मसाला या 2 तला-भुना न खाएं।
  • शरीर को हाइड्रेटेड 3 रखने के लिए पर्याप्त पानी पिएं।
  • तेज धूप में बाहर निकलने से बचें।
  • सोने और जागने का सही समय तय करें।
  • हैवी एक्सरसाइज करने से बचें।
  • अभी कूलर एसी चलाने से बचें।

1. कपड़ों में बदलाव:
मौसम बदलते ही अचानक हल्के कपड़े न पहनें। सुबह-शाम फुल स्लीव्स या हल्के ऊनी कपड़े पहनें और दिन में आरामदायक कपड़ों का चयन करें।

2. खानपान में बदलाव:

  • पाचन क्रिया धीमी होने से तला-भुना और मसालेदार भोजन कम करें।
  • हल्का, सुपाच्य और पौष्टिक आहार लें।
  • गर्म पेय से ठंडे पेय पर अचानक न शिफ्ट हों, यह पाचन पर असर डाल सकता है।

3. डिहाइड्रेशन से बचाव:

  • दिनभर में 8-10 गिलास पानी पिएं।
  • बहुत ठंडा पानी या बर्फ वाला पानी न लें, इससे गले की समस्याएं हो सकती हैं।

4. लाइफस्टाइल में बदलाव:

  • मौसम बदलते समय हैवी एक्सरसाइज से बचें।
  • सोने-जागने का सही समय निर्धारित करें और 7-8 घंटे की नींद लें।
  • तुरंत कूलर-पंखे का उपयोग न करें, इससे सर्दी-जुकाम का खतरा हो सकता है।

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Mushrooms: A Powerful Blessing for Your Health : इन 10 बीमारियों से बचाए https://healthdarbar.com/mushrooms-a-powerful-blessing/ https://healthdarbar.com/mushrooms-a-powerful-blessing/#respond Fri, 28 Mar 2025 09:59:14 +0000 https://healthdarbar.com/?p=4536

मशरूम (Mushrooms) एक नेचुरल सुपरफूड है, जो कई आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद माना जाता है। ‘द मशरूम वर्ल्ड’ के अनुसार, इसमें विटामिन D, फाइबर, प्रोटीन, पोटैशियम, मैग्नीशियम और सेलेनियम जैसे जरूरी मिनरल्स पाए जाते हैं। साथ ही, इसमें ग्लूटाथियोन और एर्गोथायोनीन जैसे शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने, हृदय को स्वस्थ रखने और पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। मशरूम की खासियत यह है कि इसमें कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है, जिससे यह वजन घटाने में भी सहायक साबित होता है। यह फाइबर और प्रोटीन का अच्छा स्रोत होने के कारण लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस कराता है और अनावश्यक भूख को नियंत्रित करता है। मशरूम में मौजूद बीटा-ग्लूकन और सेलेनियम प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं, जिससे शरीर को संक्रमण और बीमारियों से बचाव करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, मशरूम में पोटैशियम और मैग्नीशियम की प्रचुर मात्रा पाई जाती है, जो रक्तचाप को संतुलित रखने में सहायक होती है और हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में मदद करती है। यह न केवल पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है, बल्कि मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है। मशरूम को सूप, सलाद, स्टर-फ्राई, ग्रेवी और स्नैक्स के रूप में कई तरह से पकाया और खाया जा सकता है। हालांकि, हमेशा ताजे और ऑर्गेनिक मशरूम का ही सेवन करना चाहिए और जहरीले जंगली मशरूम से बचना चाहिए। कुल मिलाकर, मशरूम पोषण से भरपूर एक शानदार आहार है, जिसे अपनाकर आप अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं।

इसलिए आज Fitness Secret में हम मशरूम के बारे में विस्तार से बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • मशरूम को अपनी डाइट में शामिल करने के क्या फायदे हैं?
  • मशरूम किन लोगों को नहीं खाना चाहिए?

स्टोरी में आगे बढ़ें, उससे पहले आइए मशरूम से जुड़े एक मिथ की सच्चाई जान लेते हैं।

मशरूम से जुड़ा मिथक और उसकी सच्चाई

Mushrooms: A Powerful Blessing

दरअसल मशरूम को ‘कुकुरमुत्ता’ नाम से भी जाना जाता है। इसका अर्थ है ‘कुत्तों के टॉयलेट वाली जगह पर पैदा होने वाला।’ लेकिन यह सच नहीं है। इसका कुत्तों से कोई लेना-देना नहीं है।

मशरूम एक प्रकार का फंगस है, जो अक्सर बारिश के दिनों में नमी में पनपता है। हालांकि ऐसे मशरूम को खाया नहीं जाता है। मशरूम की कई प्रजातियां होती हैं। इसमें से कुछ ही खाने लायक होती हैं, जो कि बाजारों में आसानी से मिलते हैं। आमतौर पर खाने वाले मशरूम की खेती की जाती है।

मशरूम पोषक तत्वों से भरपूर

Mushrooms

Mushrooms: A Powerful Blessing

यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) के मुताबिक, Mushrooms जरूरी पोषक तत्वों का ‘खजाना’ हैं। इनमें सेलेनियम, ग्लूटाथियोन और विटामिन E समेत कई तरह के शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट्स पाए जाते हैं, जो कोशिकाओं की मरम्मत करने, हानिकारक फ्री रेडिकल्स को बेअसर करने और समय से पहले बुढ़ापे के प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं। Mushrooms में मौजूद एंटीइंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करने में सहायक होते हैं, जिससे जोड़ों के दर्द, गठिया और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। साथ ही, इनमें पाए जाने वाले बायोएक्टिव कंपाउंड्स कैंसर रोधी गुणों से भरपूर होते हैं, जो शरीर में कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने और उनकी वृद्धि को धीमा करने में मदद कर सकते हैं। रिसर्च के अनुसार, विशेष रूप से शिटाके, रीशी और माइटाके जैसे Mushrooms में ऐसे तत्व होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने और ट्यूमर के विकास को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा, Mushrooms शरीर की डिटॉक्सिफिकेशन प्रक्रिया को तेज करने में मदद करते हैं, जिससे हानिकारक टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं और लिवर स्वस्थ बना रहता है। इनके कम कैलोरी और हाई-फाइबर कंटेंट के कारण यह न केवल वजन घटाने में मददगार हैं, बल्कि ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने और डायबिटीज के जोखिम को भी कम करने में सहायक होते हैं। कुल मिलाकर, Mushrooms एक संपूर्ण सुपरफूड हैं, जो संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और कई गंभीर बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने में मदद करते हैं।

100 ग्राम मशरूम की न्यूट्रिशनल वैल्यू

  • प्रोटीन: 3.09 ग्राम
  • कार्बोहाइड्रेट : 3.28 ग्राम
  • फाइबर: 1 ग्राम
  • कैल्शियम : 3 मिलीग्राम
  • पोटेशियम: 318 मिलीग्राम
  • सोडियम : 5 मिलीग्राम

मशरूम सेहत के लिए किसी वरदान से कम नही

Mushrooms: A Powerful Blessing

The Mushroom World’ के मुताबिक, Mushrooms में मौजूद फाइबर, पोटेशियम और एंटीऑक्सिडेंट्स ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने और हृदय को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करते हैं। ये सेलेनियम, विटामिन D और विटामिन B6 के अच्छे स्रोत हैं, जो सेल डैमेज को रोकने, हड्डियों को मजबूत बनाने और रेड ब्लड सेल्स के निर्माण में सहायक होते हैं। Mushrooms का फाइबर पाचन तंत्र को बेहतर करता है, जबकि इसके एंटीबैक्टीरियल गुण इन्फेक्शन से बचाते हैं।

Mushrooms खाने के 10 फायदे:

  1. इम्यूनिटी बूस्ट करता है
  2. ब्लड प्रेशर कंट्रोल करता है
  3. वजन कम करने में मददगार
  4. हार्ट को हेल्दी रखता है
  5. पाचन तंत्र सुधारता है
  6. हड्डियों को मजबूत बनाता है
  7. ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करता है
  8. गट बैक्टीरिया को बेहतर करता है
  9. ब्रेन हेल्थ को सपोर्ट करता है
  10. कैंसर के खतरे को कम करता है

ज्यादा मशरूम खाना नुकसानदायक

Mushrooms: A Powerful Blessing

बेशक मशरूम खाना फायदेमंद है, लेकिन इसे ज्यादा खाने से कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। मशरूम में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इससे कुछ लोगों को पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

कुछ लोगों को मशरूम से एलर्जी होती है। इससे उन्हें स्किन रैशेज, खुजली या सांस लेने में परेशानी हो सकती है। मशरूम में पोटेशियम की मात्रा अधिक होती है, जो किडनी के मरीजों के लिए नुकसानदायक हो सकती है।

इसके अलावा अगर मशरूम ठीक से पका नहीं है या सही मशरूम की जगह जंगली मशरूम खाते हैं तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए हमेशा सही मशरूम का चयन करें।

मशरूम से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवा

क्या डायबिटिक लोग भी मशरूम खा सकते हैं?
मशरूम डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद है क्योंकि इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है। यह ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है। ध्यान रखें कि इसे कम तेल व मिर्च-मसाले में ही पकाएं।

क्या मशरूम वजन घटाने में मदद करता है?
मशरूम में कैलोरी की मात्रा कम और फाइबर व प्रोटीन की मात्रा भरपूर होती है। जिससे लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस होता है और खाने की इच्छा कम होती है। इस तरह मशरूम वजन घटाने में मददगार है।

मशरूम को अपनी डाइट में कैसे शामिल किया जा सकता है?
मशरूम की सब्जी बनाकर, हल्का भूनकर या तलकर खा सकते हैं। ध्यान रखें कि कच्चा मशरूम खाने से पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए इसे पूरी तरह पकाकर ही खाएं। इसके अलावा मशरूम को सूप, करी या सैंडविच में डाला जा सकता है। आजकल इसका इस्तेमाल पिज्जा और पास्ता में भी किया जाता है।

एक दिन में कितना मशरूम खाना चाहिए?
एक दिन में करीब 50-60 ग्राम मशरूम खाना सुरक्षित है। इससे ज्यादा खाना नुकसानदायक हाे सकता है।

 सही मशरूम का चयन कैसे करें?
बाजार में कई तरह के मशरूम आते हैं, लेकिन सभी खाने लायक नहीं होते हैं। इसलिए सही मशरूम का चयन करना जरूरी है। ध्यान रखें कि ताजे मशरूम का रंग सामान्य रूप से हल्का और सफेद या हल्का भूरा होता है। मशरूम खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसेकि-

  • अगर मशरूम का रंग फीका या सूखा हो तो उसे न खरीदें।
  • अगर उस पर काले दाग, मोल्ड या गीला हिस्सा दिखे तो भी न खरीदें।
  • मशरूम हमेशा विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें।
  • हमेशा पैकेज्ड मशरूम ही खरीदें, क्योंकि वे ताजे और साफ होते हैं।

मशरूम किन्हें नहीं खाना चाहिए?
मशरूम कोई भी खा सकता है। लेकिन गर्भवती महिलाओं, किडनी और लिवर की समस्या से पीड़ित व्यक्तियों व जिनकी हाल ही में सर्जरी हुई है, उन्हें डॉक्टर की सलाह के बिना मशरूम नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा जिन्हें मशरूम से एलर्जी है और छोटे बच्चों को भी मशरूम नहीं खाना चाहिए।

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6 Shocking Truth: Good Fat vs. Bad Fat What You Must Know : जानें सेहतमंद तेल कौन सा https://healthdarbar.com/good-fat-vs-bad-fat/ https://healthdarbar.com/good-fat-vs-bad-fat/#respond Fri, 28 Mar 2025 09:03:07 +0000 https://healthdarbar.com/?p=4534

ओबिसिटी की वजह सिर्फ ऑयल या फैट नहीं है। यहां तक कि फैट तो शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है, क्योंकि यह ऊर्जा का मुख्य स्रोत होता है और कई शारीरिक कार्यों में सहायक होता है। समस्या खराब फैट से है, यानी वह फैट जो अस्वास्थ्यकर स्रोतों से आता है, जैसे कि रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट, अतिरिक्त शुगर, प्रोसेस्ड फूड और ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल किया जाने वाला एडिबल ऑयल।

अच्छे फैट में मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलीअनसैचुरेटेड फैट आते हैं, जो नट्स, बीज, एवोकाडो, ऑलिव ऑयल और फैटी फिश में पाए जाते हैं। ये फैट हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं और शरीर के लिए लाभदायक होते हैं। वहीं, ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट, जो डीप फ्राइड फूड, प्रोसेस्ड स्नैक्स और जंक फूड में होते हैं, मोटापा और हृदय रोगों के खतरे को बढ़ाते हैं।

इसलिए, ओबिसिटी से बचने के लिए सिर्फ Fat कम करने पर ध्यान देना पर्याप्त नहीं है, बल्कि सही प्रकार का Fat चुनना और संतुलित आहार लेना ज्यादा जरूरी है।

इसलिए आज Fitness Secret में अच्छे और खराब फैट की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • गुड फैट और बैड फैट में क्या अंतर है?
  • किन चीजों को खाने से अच्छा फैट मिलता है?
  • किन चीजों से शरीर में खराब फैट बढ़ सकता है?

मोटापे के आंकड़े चिंताजनक

Good Fat vs. Bad Fat

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया में हर 8 में से 1 व्यक्ति मोटापे से ग्रस्त है, और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। पिछले कुछ दशकों में बच्चों में मोटापे का खतरा 4 गुना बढ़ चुका है, जो एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता का विषय बन चुका है। साल 2022 में वैश्विक स्तर पर करीब 250 करोड़ लोग इस समस्या से प्रभावित थे, जिसमें अधिकतर लोग शहरीकरण, अस्वास्थ्यकर खानपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण मोटापे का शिकार हुए।

मोटापा केवल वजन बढ़ने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह हृदय रोग, टाइप-2 डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर और मानसिक तनाव जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है। इसका प्रमुख कारण असंतुलित आहार, जंक फूड का अधिक सेवन, स्क्रीन टाइम में वृद्धि, अनियमित दिनचर्या और शारीरिक गतिविधियों की कमी है। इसके अलावा, कुछ मामलों में अनुवांशिक कारण भी मोटापे में योगदान देते हैं।

इस समस्या से बचाव के लिए संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, स्क्रीन टाइम में कमी, तनाव प्रबंधन और पर्याप्त नींद जैसी स्वस्थ जीवनशैली अपनाना आवश्यक है। यदि इस वैश्विक समस्या पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो यह स्वास्थ्य संकट और गहराता जाएगा। जागरूकता और सही आदतों को अपनाकर ही मोटापे की बढ़ती चुनौती से निपटा जा सकता है।

शरीर के लिए फैट कितना जरूरी?

हमारे शरीर के निर्माण में पानी के अलावा जो दो चीजें सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुई हैं, वह प्रोटीन और फैट ही हैं-

फैट दुश्मन नहीं है

Good Fat vs. Bad Fat

अगर आप भी सोचते हैं कि फैट सेहत के लिए नुकसानदायक होता है, तो यह पूरी तरह सच नहीं है। इसे आसान भाषा में ऐसे समझिए कि तो फैट दो तरह के होते हैं- गुड फैट और बैड फैट। गुड फैट सेहत के लिए जरूरी होता है, जबकि बैड फैट कई बीमारियों की वजह बन सकता है।

गुड फैट सेहत के लिए जरूरी

Good Fat vs. Bad Fat

गुड फैट से शरीर को जरूरी एनर्जी मिलती है, दिल स्वस्थ रहता है और अच्छा कोलेस्ट्रॉल (HDL) बढ़ता है। इससे सेहत को कई अन्य फायदे भी होते हैं-

  • ब्रेन फंक्शनिंग बेहतर होती है।
  • स्किन और बालों की सेहत सुधरती है।
  • पाचन तंत्र और इम्यूनिटी मजबूत होती है।
  • हार्ट डिजीज का जोखिम कम होता है।
  • वजन कंट्रोल में रहता है।
  • हड्डियां और जॉइंट्स मजबूत होते हैं।

बैड फैट से होती बीमारिया

Good Fat vs. Bad Fat

बैड फैट से शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) बढ़ता है और इससे हार्ट डिजीज समेत कई बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है। स्किन और बालों से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।

  • वजन और मोटापा बढ़ सकता है।
  • बालों से जुड़ी समस्या हो सकती है।
  • स्किन डिजीज हो सकती है।
  • हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है।
  • हार्ट डिजीज हो सकती हैं।
  • इंफ्लेमेशन हो सकता है।
  • डायबिटीज हो सकती है।
  • फैटी लिवर हो सकता है।
  • कैंसर हो सकता है।

गुड फैट के लिए क्या खाएं?

Good Fat vs. Bad Fat

अगर आप सेहतमंद रहना चाहते हैं तो डाइट में गुड फैट शामिल करना बहुत जरूरी है। आमतौर पर ड्राई फ्रूट्स और सीड्स से मिला फैट सबसे अच्छा फैट होता है। गुड फैट के लिए ये चीजें खा सकते हैं-

  • बादाम: दिल और दिमाग के लिए फायदेमंद।
  • मूंगफली: हार्ट डिजीज और डायबिटीज में फायदेमंद।
  • अखरोट: स्किन और हड्डियों के लिए फायदेमंद।
  • सनफ्लावर सीड्स: इम्यूनिटी बूस्टर है।
  • चिया सीड्स: स्किन और डाइजेशन के लिए फायदेमंद।
  • अलसी के बीज: हार्ट और ब्रेन हेल्थ के लिए फायदेमंद।
  • नारियल तेल: पाचन और स्किन के लिए फायदेमंद।
  • सरसों का तेल: दिल और हड्डियों के लिए फायदेमंद।

इसके अलावा अगर सीमित मात्रा में दूध, दही, पनीर और घी खाया जाए तो वह भी फायदेमंद है।

किन चीजों से मिलता है बैड फैट?

Good Fat vs. Bad Fat

हर वो चीज जो पैकेट में बंद है और तुरंत खोलकर खाई जा सकती है, उसमें बैड फैट होता है। अगर आप भूख लगने पर चिप्स या कोई नमकीन खरीदकर का लेते हैं तो समझ लीजिए आप अपने शरीर को ढेर सारा बैड फैट दे रहे हैं और कई बीमारियों को बुलावा दे रहे हैं।

इनके अलावा बहुत तली-भुनी चीज, प्रोसेस्ड फूड और जंक फूड में भी बैड फैट ही होता है। इनके कारण ही पूरी दुनिया में मोटापा इतनी तेजी से बढ़ रहा है। किन चीजों से शरीर में बैड फैट बढ़ता है, देखिए-

  • फ्रेंच फ्राइज, बर्गर और पिज्जा।
  • सभी सॉसेज और प्रोसेस्ड मीट।
  • पकौड़ा, समोसा और कचौड़ी।
  • केक, कुकीज, डोनट्स और पेस्ट्री।
  • चिप्स और नमकीन स्नैक्स।
  • कोल्ड ड्रिंक्स और पैक्ड जूस।
  • रिफाइंड तेल और बाजार का मक्खन।
  • प्रोसेस्ड चीज और वनस्पति घी।
  • आइसक्रीम और चॉकलेट्स।

गुड फैट और बैड फैट से जुड़े कॉमन सवाल और जवाब

क्या सरसों का तेल खाना हेल्दी है?
हां, सरसों का तेल खाना हेल्दी है, लेकिन जरूरी है कि इसे सही तरीके से और सीमित मात्रा में इस्तेमाल करें। इसमें ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड होते हैं, जो खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) को कम और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL) को बढ़ाने में मदद करते हैं। इससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है और दिल की बीमारियों का जोखिम कम होता है। यह हार्ट हेल्थ, इम्यूनिटी और पाचन के लिए फायदेमंद माना जाता है। इसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण भी होते हैं, जो संक्रमण से बचाते हैं।

क्या घी खाना हेल्दी है?
हां, घी सेहत के लिए फायदेमंद है। इसके साथ भी वही शर्त है कि इसे सीमित मात्रा में खाएं। घी खाने से इम्यूनिटी बढ़ती है, पाचन में सुधार होता है और ब्रेन फंक्शनिंग भी सुधरती है।

घी में ओमेगा-3 और ओमेगा-9 फैटी एसिड होते हैं, इससे हार्ट हेल्थ सुधरती है। इसमें विटामिन A, D, E और K होते हैं, जिससे हड्डियां और इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। रोज 1-2 चम्मच यानी 10-15 ग्राम घी खाना फायदेमंद है।

क्या बारबार एक ही तेल को गर्म करने से सेहत को नुकसान होता है?
हां, बार-बार एक ही तेल को गर्म करना बहुत नुकसानदायक हो सकता है। एक ही तेल को बार-बार गर्म करने से उसमें खतरनाक टॉक्सिन, ट्रांस फैट, हाइड्रोकार्बन और फ्री रेडिकल्स बनने लगते हैं, जो दिल, लिवर और पाचन तंत्र के लिए नुकसानदायक होते हैं। इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है।

भोजन में कौन सा तेल इस्तेमाल करना चाहिए?
भोजन बनाने में सही तेल इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है। इससे हमारा दिल और दिमाग सीधे प्रभावित होते हैं। इसके अलावा स्किन, बाल और हड्डियों को लिए भी जरूरी है। भोजन बनाने के लिए ये तेल इस्तेमाल कर सकते हैं-

  • सरसों का तेल
  • नारियल का तेल
  • मूंगफली का तेल
  • जैतून का का तेल
  • घी

ये तेल नहीं इस्तेमाल करने चाहिए

  • रिफाइंड ऑयल
  • पाम ऑयल
  • वनस्पति घी

हमेशा हंसते रहिए, मुस्कुराते रहिए, और रोज़ कुछ नया सीखते रहिए, ताकि आपकी सेहत बनी रहे शानदार! धन्यवाद|

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Boost Your Lifespan by 7% with a Simple 10-Min Walk | लंबी उम्र का चौंकाने वाला राज https://healthdarbar.com/boost-your-lifespan/ https://healthdarbar.com/boost-your-lifespan/#respond Fri, 28 Mar 2025 06:01:52 +0000 https://healthdarbar.com/?p=4518

मेडिकल जर्नल JAMA इंटरनेशनल में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, रोज सिर्फ 10 मिनट टहलने से Lifespan यानी जीवन प्रत्याशा कई साल तक बढ़ सकती है। इस स्टडी में पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति रोज सिर्फ 10 मिनट ब्रिस्क वॉक (तेज टहलना) करता है तो प्रीमेच्योर मौत का जोखिम 7% तक कम हो सकता है। अगर वॉकिंग टाइम बढ़ाकर 20 मिनट कर दें तो प्रीमेच्योर मौत का जोखिम 13% तक कम हो सकता है। वहीं, इसे बढ़ाकर 30 मिनट कर दिया जाए तो प्रीमेच्योर मौत का जोखिम 17% तक कम हो सकता है। इसका मतलब है कि ब्रिस्क वॉक से प्रीमेच्योर मौत का जोखिम कम हो जाता है और Lifespan बढ़ सकती है।

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक स्टडी के मुताबिक, प्रतिदिन सिर्फ 30 मिनट टहलने से दिल की बीमारियों का खतरा 19% तक कम हो सकता है। वहीं, जर्मन हेल्थ इंस्टीट्यूट, रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट की एक स्टडी के मुताबिक, खाने के बाद 15 मिनट की वॉक से शरीर और दिमाग दोनों दुरुस्त रहते हैं। इससे ब्लड शुगर लेवल भी कंट्रोल में रहता है, जिससे टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम कम हो जाता है। कुल मिलाकर, टहलना Lifespan बढ़ाने और सेहतमंद जीवन के लिए बेहद फायदेमंद है।

इसलिए Fitness Secret में आज हम ब्रिस्क वॉक की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • ब्रिस्क वॉक से क्या फायदे होते हैं?
  • किन लोगों को ब्रिस्क वॉक से बचना चाहिए?

वॉकिंग के लिए छोटे टारगेट सेट करें

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इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. दीपक गुप्ता कहते हैं कि जब लोग फिजिकल फिटनेस के लिए प्लान बनाते हैं, तो अक्सर वे बहुत बड़े और मुश्किल टारगेट सेट कर लेते हैं। ऐसे में शुरू में जोश के साथ शुरुआत तो होती है, लेकिन कुछ ही दिनों में इसे फॉलो करना मुश्किल हो जाता है, जिससे वे बीच में ही छोड़ देते हैं। इसलिए, छोटे और व्यावहारिक टारगेट तय करना जरूरी है, ताकि इसे आसानी से अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाया जा सके। छोटे-छोटे स्टेप्स से धीरे-धीरे आदत विकसित होगी, जिससे नियमितता बनी रहेगी और फिटनेस गोल्स को हासिल करना आसान होगा।

सिर्फ 10 मिनट टहलना भी फायदेमंद

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डॉ. दीपक गुप्ता के मुताबिक, अगर आप रोज सुबह एक्सरसाइज के लिए आधे घंटे नहीं निकाल सकते हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। पूरे दिन में सिर्फ 10-15 मिनट की ब्रिस्क वॉक भी बहुत फायदेमंद है। इससे पाचन तंत्र में सुधार हो सकता है, मोटापा कम हो सकता है। इससे और क्या फायदे होते हैं

  • मेटाबॉलिज्म तेज होता है।
  • मोटापा कम होता है।
  • पाचन बेहतर होता है।
  • इंसुलिन रेजिस्टेंस कम होता है।
  • मूड बेहतर होता है।
  • कॉग्निटिव हेल्थ सुधरती है।
  • नींद अच्छी आती है।

हार्ट और ब्रेन हेल्थ में होता सुधार

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रोज कुछ मिनट की ब्रिस्क वॉक से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जिससे ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। जब ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर संतुलित रहते हैं, तो हार्ट हेल्थ में भी सुधार होता है, जिससे हृदय रोगों का जोखिम कम हो जाता है। इसके अलावा, नियमित तेज़ टहलने से इंफ्लेमेशन (सूजन) कम होती है, जिससे शरीर की मेटाबॉलिक फंक्शनिंग बेहतर होती है और डायबिटीज जैसी बीमारियों का खतरा घटता है।

ब्रिस्क वॉक सिर्फ शरीर ही नहीं, बल्कि दिमाग के लिए भी फायदेमंद होती है। यह मस्तिष्क के रक्त संचार को बढ़ाती है, जिससे ब्रेन फंक्शनिंग में सुधार होता है और मानसिक सतर्कता बनी रहती है। साथ ही, यह तनाव कम करने में भी सहायक होती है, जिससे संपूर्ण स्वास्थ्य बेहतर होता है। नियमित वॉक करने से शरीर और दिमाग दोनों मजबूत बनते हैं, जिससे जीवनशैली स्वस्थ और सक्रिय बनी रहती है।

बिजी लाइफस्टाइल से कुछ मिनट चुराए

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आजकल लोगों की जिंदगी इतनी व्यस्त है कि अपनी सेहत के लिए कुछ मिनट निकालना भी मुश्किल हो गया है। हालांकि, डॉ. दीपक गुप्ता कहते हैं कि अगर हम थोड़े एफर्ट्स करें तो अपने लिए कुछ मिनट निकालकर वॉक तो कर ही सकते हैं। इसमें कोई मेहनत नहीं लगती है और खर्च भी नहीं आता है।

ऐसे करें कुछ मिनट एक्स्ट्रा वॉक

  • फोन पर बात करते हुए बैठने की बजाय टहलें ।
  • एलिवेटर या लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों से चढ़ें।
  • हर एक घंटे में कुछ मिनट वॉक के लिए सीट से उठें।
  • गाड़ी कुछ दूर पार्क करें ताकि थोड़ा पैदल चल सकें।
  • भोजन के बाद कुछ देर पैदल जरूर चलें।

ब्रिस्क वॉक पर कुछ कॉमन सवाल और जवाब

सवाल: ब्रिस्क वॉक कितनी तेज होनी चाहिए?

जवाब: आमतौर पर 1 घंटे में 5-6 किलोमीटर की रफ्तार से चलना ब्रिस्क वॉक माना जाता है। इसे ऐसे समझिए कि अगर आप प्रति मिनट करीब 100 कदम चल रहे हैं तो ब्रिस्क वॉक के लिए आपकी स्पीड सही है।

सवाल: रोज कितनी देर ब्रिस्क वॉक करनी चाहिए?

जवाब: अच्छे स्वास्थ्य के लिए हफ्ते में कम-से-कम 120 मिनट ब्रिस्क वॉक करनी चाहिए। इसका मतलब है कि हफ्ते में कम-से-कम 5 दिन नियमित रूप से 24-25 मिनट ब्रिस्क वॉक करनी चाहिए। अगर वजन कम करना चाहते हैं तो आप थोड़े एक्स्ट्रा एफर्ट्स दे सकते हैं यानी पूरे दिन में 30-35 मिनट तक ब्रिस्क वॉक कर सकते हैं। अगर हेल्दी डाइट लें तो वजन कम करने में आसानी होगी। आपके पास समय नहीं है तो 10-15 की ब्रिस्क वॉक भी काफी है।

सवाल: ब्रिस्क वॉक सामान्य वॉक की अपेक्षा ज्यादा फायदेमंद क्यों है?

जवाब: सामान्य वॉक का मतलब है कि आप बिना किसी एफर्ट के आराम से चल रहे हैं। जबकि ब्रिस्क वॉक थोड़ी तेज होती है, इस दौरान लगभग पूरा शरीर हरकत में होता है। इससे हल्का पसीना आता है और दिल की धड़कन भी बढ़ती है। यह हार्ट बीट रेगुलेशन में भी मदद करता है।

सवाल: क्या ब्रिस्क वॉक से घुटनों में दर्द बढ़ सकता है?

जवाब: अगर टहलने की जगह ऊबड़-खाबड़ नहीं है और आपके घुटनों में पहले से कोई समस्या नहीं है तो कोई दिक्कत नहीं होती है। आमतौर पर घुटनों की समस्या में भी इससे राहत मिलती है। इसके बावजूद अगर घुटनों में दर्द है तो ब्रिस्क वॉक से पहले डॉक्टर से सलाह जरूरी है।

सवाल: ब्रिस्क वॉक का सही तरीका क्या है?

जवाब:

  • इस दौरान शरीर सीधा रखें और झुककर न चलें।
  • पूरी वॉक के दौरान कदमों की रफ्तार एक समान रखें।
  • बहुत लंबे स्ट्राइड न लें यानी बहुत लंबे डग न रखें।
  • इस दौरान हाथों का मूवमेंट जरूरी है, इससे स्पीड और बैलेंस बना रहता है।
  • गहरी सांस लें और इस दौरान नाक से सांस लेने की कोशिश करें।

सवाल: क्या ब्रिस्क वॉक जिम का विकल्प हो सकती है?

जवाब: हां, बिल्कुल हो सकती है। अगर कोई हैवी एक्सरसाइज नहीं करना चाहता है तो ब्रिस्क वॉक एक अच्छा विकल्प हो सकती है। यह एक अच्छी कार्डियो एक्सरसाइज है और इससे फिजिकल फिटनेस भी बनी रहती है।

सवाल: ब्रिस्क वॉक के लिए सही समय क्या है, सुबह या शाम?

जवाब: इसके लिए तो दिन में कोई भी समय सही है। हालांकि, सुबह ताजी हवा और कम प्रदूषण के कारण मॉर्निंग ब्रिस्क वॉक ज्यादा फायदेमंद है। अगर सुबह समय नहीं मिलता है तो शाम को भी वॉक पर जा सकते हैं।

सवाल: किन लोगों को ब्रिस्क वॉक से बचना चाहिए?

जवाब: ब्रिस्क वॉक ज्यादातर लोगों के लिए फायदेमंद होती है। हालांकि, कुछ खास कंडीशन में इससे बचना चाहिए या डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए। इन सभी लोगों को डॉक्टर की सलाह के बाद ही ब्रिस्क वॉक करनी चाहिए-

  • जिन लोगों को गंभीर हार्ट डिजीज है।
  • जिन्हें जोड़ों और घुटनों में गंभीर दर्द रहता है।
  • जिनका ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा रहता है।
  • जिनकी हाल ही में कोई सर्जरी हुई है।
  • जिन्हें अस्थमा या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) है।
  • जिनका शुगर लेवल बहुत कम या ज्यादा रहता है
  • जिन प्रेग्नेंट महिलाओं को कोई कॉम्प्लिकेशन है।
  • जिन्हें कोई गंभीर न्यूरोलॉजिकल समस्या है।

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