Why BMI Fails: The 6 Hidden Truth About Obesity, आज से ही वजन घटाना शुरू करें

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, मोटापा एपिडेमिक बन गया है। एपिडेमिक का मतलब है ऐसी बीमारी, जो दुनिया में बहुत तेजी से फैल रही है। मोटापे की वजह से जानलेवा बीमारियों की जद में आकर हर साल 28 लाख वयस्कों की मौत हो रही है।

भारत और दुनिया के सभी देश मोटापे को लेकर चिंतित हैं। WHO भी इसे लेकर फिक्रमंद है। पूरी दुनिया के डॉक्टर्स को लगता है कि मोटापे को अब हल्के में नहीं लिया जा सकता। इसे ज्यादा ठीक ढंग से समझने की जरूरत है। इसलिए अब मोटापे को आइडेंटीफाई करने के तरीके को भी पहले से ज्यादा साइंटिफिक बनाने पर जोर दिया जा रहा है।

भारत में डॉक्टर पिछले 15 सालों से मोटापे का पता लगाने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (BMI) टूल का इस्तेमाल करते रहे हैं। BMI शरीर के वजन (किलोग्राम) और लंबाई (मीटर) के अनुपात से निकाला जाने वाला एक गणितीय सूत्र है। यह बताता है कि व्यक्ति अंडरवेट, नॉर्मल, ओवरवेट या मोटापे की श्रेणी में आता है। आमतौर पर 25 से ऊपर का BMI ओवरवेट और 30 से ऊपर का मोटापे का संकेत देता है।

लेकिन अब इसे लेकर नई गाइडलाइंस आई हैं। अब मोटापे का पता लगाने के लिए BMI का इस्तेमाल सिर्फ एक सपोर्ट मॉनीटरिंग टूल की तरह होगा। यानी इसे मोटापे का अकेला मापदंड नहीं माना जाएगा, बल्कि अन्य फैक्टर्स जैसे शरीर में फैट का प्रतिशत, मसल्स मास, कमर-हिप रेशियो और मेटाबॉलिक हेल्थ को भी ध्यान में रखा जाएगा।

इसलिए ‘Fitness Secret’ में आज जानेंगे कि मोटापे की नई परिभाषा क्या है। साथ ही जानेंगे कि-

  • क्यों मोटापे का पता लगाने के लिए BMI काफी नहीं?
  • क्लिनिकल और प्रीक्लिनिकल ओबिसिटी क्या है?

मोटापे की नई परिभाषा क्या है?

लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रोनोलॉजी कमीशन में पूरी दुनिया के 58 एक्सपर्ट डॉक्टर्स ने मोटापे की नई परिभाषा दी है। अभी तक मोटापा पता करने के लिए पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो रहा BMI अब काफी नहीं होगा। डॉक्टर्स का मानना है कि इसे और ज्यादा सांइंटिफिक और क्लिनिकल तरीके से समझने की जरूरत है।

रिसर्च में बताया गया है कि अगर मोटापे को ज्यादा साइंटिफिक ढंग से समझा जाए तो यह पहचानने में मदद मिलेगी कि किस तरह का मोटापा किन बीमारियों के लिए जोखिम बन सकता है। इससे हम उस दिशा में काम करके उन सभी बीमारियों का जोखिम टाल सकते हैं।

BMI में क्या कमियां हैं?

BMI की सबसे बड़ी कमी ये है कि इसमें फैट और मसल्स के बीच अंतर नहीं पता चलता है। मान लीजिए किसी व्यक्ति का BMI 30 है, लेकिन उसका यह वजन मसल्स और बोन डेंसिटी के कारण ज्यादा है। ऐसे में वह फिट होने के बावजूद BMI के मुताबिक मोटा है। जबकि, किसी दूसरे व्यक्ति की कमर के आसपास फैट जमा है, पर उसका BMI 24 ही है तो वह BMI मुताबिक फिट है।

BMI की इन खामियों को लेकर डॉक्टर्स ने कई बार सवाल उठाए हैं। इसके कारण कई लोगों को समय पर जरूरी ट्रीटमेंट नहीं मिल पाता है।

लोअर एब्डॉमिन में जमा फैट हाथ-पैर के फैट से ज्यादा खतरनाक

नई रिसर्च में स्पष्ट किया गया है कि कमर के आसपास जमा फैट या फिर लिवर और हार्ट में जमा फैट ज्यादा खतरनाक होता है। यह हाथ-पैर या स्किन के नीचे जमा फैट की तुलना में ज्यादा हेल्थ प्रॉब्लम्स खड़ी कर सकता है। इससे कई क्रॉनिक डिजीज का जोखिम हो सकता है।

मोटापे के लिए नई गाइडलाइंस क्या हैं?

दुनिया के सभी देश मोटापे की समस्या को गंभीरता से ले रहे हैं। यह आने वाले समय में बड़ा जोखिम बन सकता है। इससे कई गंभीर बीमारियों का जोखिम पैदा हो सकता है। इसलिए नई गाइडलाइंस में इसे दो स्टेज में बांटकर ट्रीटमेंट करने की सलाह दी गई है।

क्लिनिकल ओबिसिटी क्या है?

क्लिनिकल ओबिसिटी एक क्रॉनिक डिजीज है, जिसके कारण शरीर में जमा एक्स्ट्रा फैट के कारण ऑर्गन्स की फंक्शनिंग प्रभावित होने लगती है। रोजाना के कामकाज में मुश्किल होती है। रिसर्चर्स ने इसे पहचानने के लिए बच्चों और एडल्ट्स के लिए अलग-अलग क्राइटेरिया बनाए हैं। इसमें आमतौर पर जोड़ों का दर्द, सांस लेने में परेशानी, हार्ट फेल्योर, और ऑर्गन डिस्फंक्शन जैसे लक्षण दिखते हैं।

प्रीक्लिनिकल ओबिसिटी क्या है?

प्रीक्लिनिकल ओबिसिटी का मतलब है कि इस डिजीज के कारण अभी तक कोई हेल्थ प्रॉब्लम नहीं हुई है। हालांकि, इसकी वजह से टाइप-2 डायबिटीज, कार्डियोवस्कुलर डिजीज और कुछ कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ रहा है। इसके अलावा शरीर में एक्स्ट्रा फैट दिख रहा है। इसमें इस बात की बहुत गुंजाइश होती है कि अगर कुछ सुधार कर लिए जाएं तो गंभीर हेल्थ कंडीशंस का जोखिम टाला जा सकता है।

मोटापे से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब

सवाल: पूरी दुनिया में मोटापे से जुड़े आंकड़े क्या कहते हैं?

जवाब: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनिया में हर 8वां शख्स मोटापे से जूझ रहा है। यह बीमारी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि WHO इसे एपिडेमिक मान रहा है। मोटापा कार्डियोवस्कुलर डिजीज और कैंसर जैसी कई गंभीर बीमारियों के लिए रास्ता तैयार करता है।

सवाल: WHO मोटापे को लेकर इतना फिक्रमंद क्यों है?

जवाब: WHO के मुताबिक, मोटापा नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों का कारण बन सकता है। इससे दिल की बीमारी और फेफड़े के इन्फेक्शन का जोखिम भी बढ़ता है। हर साल पूरी दुनिया में करीब 28 लाख लोग अधिक वजन या मोटापे के कारण मौत का शिकार हो रहे हैं।

सवाल: मोटापे के कारण किन बीमारियों का जोखिम हो सकता है?

जवाब: मोटापे के कारण कई क्रॉनिक डिजीज का जोखिम बढ़ जाता है।

  • इससे 13 तरह के कैंसर हो सकते हैं।
  • टाइप-2 डायबिटीज हो सकती है।
  • कार्डियोवस्कुलर डिजीज हो सकती है।
  • स्ट्रोक हो सकता है।
  • हड्डियों से जुड़ी समस्या हो सकती है।
  • फर्टिलिटी क्षमता प्रभावित हो सकती है।

सवाल: मोटापा किन कारणों से बढ़ता है?

जवाब: मोटापे का सबसे बुनियादी कारण है, शरीर की रोजाना जरूरत से ज्यादा कैलोरी ग्रहण करना। इसके अलावा सिडेंटरी लाइफस्टाइल, लो फिजिकल एक्टिविटी, जंक फूड, अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड, शुगरी ड्रिंक्स और नींद की कमी जैसे कई कारण हैं।

सवाल: क्या मोटापा बढ़ने से कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है?

जवाब: हां, यह सच है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया के सभी बड़े डॉक्टर्स इस बारे में दुनिया को आगाह कर रहे हैं। इससे कई क्रॉनिक डिजीज का जोखिम बढ़ जाता है। मोटापे के कारण लगभग 13 तरह के कैंसर का जोखिम फिट लोगों की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है।

सवाल: क्या मोटापा बढ़ने से स्लीप एप्निया हो सकता है ?

जवाब: हां, मोटापा बढ़ने से स्लीप एप्निया भी हो सकता है। असल में स्लीप एप्निया की प्रमुख वजह मोटापा ही है। गले के आसपास फैट जमा होने से श्वसन नली दबने लगती है। इसलिए नींद के दौरान सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

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